महादुर्गेश्वर प्रपत्ति

दिनांक ६ मई, २०१० को सद्‌गुरु श्रीअनिरुद्धजी ने रामराज्य के विषय पर प्रवचन में अपने समाज में, अपने जीवन में रामराज्य लाने के लिए श्रद्धावानों को मार्गदर्शन किया था। दिनांक ६ मई, २०१० को सद्‌गुरु श्रीअनिरुद्धजी ने रामराज्य के विषय पर प्रवचन में अपने समाज में, अपने जीवन में रामराज्य लाने के लिए श्रद्धावानों को मार्गदर्शन किया था।

“रामराज्य यानी रामजी ने अयोध्या में जैसा राज्य चलाया वैसा राज्य। अयोध्या के नागरिक जैसे थे वैसे सभी का बनना, वैसी समाज व्यवस्था बनना, हर व्यक्ति वैसा बने, वैसे समष्टि की प्रतिक्रिया हो वही रामराज्य होता है”, ऐसा सद्‌गुरु श्रीअनिरुद्ध बापूजी ने कहा था। व्यक्तिगत, पारिवारिक तथा सामाजिक स्तर पर रामराज्य लाने के लिए बापूजी ने कुछ उपक्रमों की घोषणा की थी। तथा व्यक्तिगत स्तर पर कुछ उपासनाएँ, आदि करने के लिए कहा था। उनमें महिलाओं तथा पुरुषों की प्रत्ति का समावेश था।

‘प्रपत्ति का अर्थ है, ‘आपत्ति निवारण करनेवाली शरणागति’, शरण जाने की क्रिया यानी आदिमाता चण्डिका तथा उसके पुत्र त्रिविक्रम के सन्मुख ‘तुम बिन कौन सहारा’, तुम ही एकमात्र आधार, अनन्यभाव तथा पूर्ण ईमानदारी ऐसी निष्ठा से शरणागत होना। श्रीगुरुक्षेत्रम मंत्र का विश्वासपूर्वक स्विकार करके उसका नित्य पाठ करने से ’नित्यप्रपत्ति’ होती है। ’नैमित्तिकप्रपत्ति’ यानी पुरुषों के लिए ‘रणचण्डिका प्रपत्ति’ तथा महिलाओं के लिए ‘श्रीमंगलचण्डिका प्रपत्ति’। यह प्रपत्तियां हर श्रद्धावान पुरुष तथा महिला को प्रापंचिक तथा आध्यात्मिक स्तर पर एक पराक्रमी सैनिक बनाती है। सावन महीने में सोमवार के दिने यह ‘रणचण्डिका प्रपत्ति’ की जाती थी। बापूजी ने कहा था कि, “सावन में किसी भी एक सोमवार को श्रद्धावान पुरुष यह प्रपत्ति कर सकते हैं। दो सोमवार को करें तो ज्यादा अच्छा है और अगर सभी सोमवार को करें तो बडी खुशी की बात है, परंतु कम से कम एक सोमवार को तो जरुर करें।”

महिलाओं की तथा पुरुषों की ग्रहण क्षमता भिन्न-भिन्न है। यह प्रकृति द्वारा किया गया बदलाव है। इसी लिए पुरुषों को सावन महीने के सोमवार को तथा महिलाओं को केवल मकरसंक्रांति के दिन की प्रपत्ति दी गई है।

बाद में बापूजी ने पुरुषों की रणचण्डिका प्रपत्ति में समय के अनुरूप बदलाव किए तथा यह रणचण्डिका प्रपत्ति अब ‘महादुर्गेश्वर प्रपत्ति’ के नाम से जानी जाती है। सावन में सोमवार के दिन भगवान शिवशंकर के साथ नरसिंह अवतार की पूजा का भी मान होता है। बापू्जी रामराज्य के अपने प्रवचन में कहते हैं कि, प्रत्येक पुरुष की श्रद्धा होनी चाहिए कि भगवान त्रिविक्रम ही नरसिंह हैं। महादुर्गेश्वर प्रपत्ति में त्रिविक्रम की प्रतिमा का पूजन किया जाता है। त्रिविक्रम के पिछे चण्डिकाकुल की तस्वीर रखी जाती है। श्रीचण्डिकाकुल की तस्वीर में श्रीहनुमानजी के आगे बिराजमान जो शिवलिंग है वह हनुमानजी का आत्मलिंग है अर्थात श्रीमहादुर्गेश्वरजी हैं। श्रीचण्डिकाकुल की तस्वीर में श्रीमहादुर्गेश्वर बिराजमान हैं इसलिए महादुर्गेश्वर प्रपत्ति में श्रीचण्डिकाकुल की तस्वीर रखी जाती है। यह प्रपत्ति विशेषकर सामूहिक तौर पर करनी चाहिए परंतु यदि यह संभव न हो तो व्यक्तिगत स्तर पर अकेले में भी की जा सकती है।

श्रीमहादुर्गेश्वर प्रपत्ति कैसे करें?

श्रद्धावान पुरुष सूर्यास्त के बाद एकसाथ मिलकर यह प्रपत्ति करें। श्रद्धावान की पोशाक (सफेद शर्ट, सफेद लुंगी तथा सफेद उपरना) में ही प्रपत्ति की जाती है। गुरुक्षेत्रम्‌ मंत्र का पाँच बार पाठ करने के पश्चात ११ बार महादुर्गेश्वर का जाप किया जाता है। तत्पश्चात श्रीमहादुर्गेश्वर प्रपत्ति की कथा पढ़ी जाती है। श्रीमहादुर्गेश्वर प्रपत्ति की यह कथा बेहद सुंदर तथा भक्तिभावपूर्ण है। सावन में सोमवार के दिन की जानेवाली इस प्रपत्ति का महत्त्व तथा इससे होनेवाले बदलावों का पता हमें इस कथा से चलता है। यह कथा सभी प्रकार के बल प्रदान करनेवाली है।

इसके बाद द्वादश ज्योतिर्लिंग आरती की जाती है। सभी श्रद्धावान सामग्री से भरी थाली हाथों में लिए आरती उतारते हैं। आरती के बाद श्रद्धावान ‘बम-बम भोलेनाथ बम-बम भोले’ इस मंत्र का गजर करते हुए भगवान की १२ परिक्रमाएँ करते हैं। इस गजर में ‘बं’ बीज विकास का बीज है, बल का बीज है, अनुग्रह का बीज है और इसकी नियंत्रक बलगंगागौरी अर्थात शिवगंगागौरी हैं जो सभी अरिष्टों का स्तंभन करती हैं। इसके बाद भगवान त्रिविक्रम को सफेद एवं पीले फूल अर्पण किए जाते हैं, फिर अक्षत अर्पण करके हाथ जोड़कर प्रणाम किया जाता है।

इस प्रपत्ति के बारे में अधिक जानकारी ’श्रीमहादुर्गेश्वर प्रपत्ति’ नामक पुस्तिका में उपलब्ध है।