अनिरुद्धाज्‌ युनिर्व्हसल बैंक ऑफ रामनाम

‘रामनाम सबसे पवित्र नाम है, गुरु नाम सबसे पवित्र नाम है, मैं इस रामनाम की, इस भगवद्‌ नाम की बैंक खोल रहा हूँ।’

– सद्गुरु श्रीअनिरुद्ध

सद्‌गुरु श्री अनिरुद्धजी के इन शब्दों के साथ, सर्वसामान्य श्रद्धावानों का जीवन आनंददायी एवं सुखी संपन्न बनाने के उद्देश्य से १८ अगस्त २००५ को एक अनोखे एवं निराले उपक्रम का शुभारंभ हुआ। उसका नाम है, ‘अनिरुद्धाज् युनिवर्सल बैंक ऑफ रामनाम’!

बैंक, बैंक का व्यवहार एवं उसके नियमों की बात आती है तो आज भी सर्वसामान्य व्यक्ति कुछ हद तक हिचकिचाता है। परन्तु ‘रामनाम’ की यह बैंक सभी प्रकार के भय, दिक्कतें एवं चिंताओं को दूर भगाती है। हर एक श्रद्धावान को अपनीसी लगनेवाली ये बॅंक सरल और आसान नियमों पर आधारित है।

‘अनिरुद्धाज युनिवर्सल बैंक ऑफ रामनाम’ की स्थापना के पहले महीने में ही इस बैंक में ४३१३८ अकाऊंट खोले गए और ६२१५८ रामनाम की बहियां जमा हुईं।

रामनाम बही एवं महत्त्व

‘रामनाम बही’ २२० पन्नों की है, जो भक्तों को आसानी से भगवत् नाम, गुरुनाम लिखने के साथ साथ नाम-उच्चारण का भी सुनहरा अवसर प्रदान करती है। इस बही के पहले १०८ पन्नों पर ‘राम’ नाम लिखना होता है। अगले हर २८ पन्नों पर क्रमश: ’श्री राम जय राम जय जय राम’, ‘कृष्ण’, ‘दत्तगुरु’ और ‘जय जय अनिरुद्ध हरि’ यह मंत्र लिखना होता है। रामनाम बही के प्रत्येक पन्ने पर भक्तिमार्ग के अग्रणी, प्रभु श्रीरामजी के दास ‘हनुमानजी’ की साक्षी से प्रत्येक नाम लिखा जाता है।

श्री हनुमानजी के आकृतिबंध में ‘राम’ नाम लिखने का महत्त्व बहुत ही अनोखा है। जब वानरसैनिकों को अपनी दुलारी जानकी माता को लंका से लाने के लिए ‘श्रीरामेश्वर से लंका’ तक ऐसा अभेद्य सेतु बनाना था तब स्थापत्य के अत्युच्च आचार्य भौम ऋषि से शिक्षा प्राप्त किए हुए नल और नील नामक वानरवीर इस सेतु को बनाने का कार्य आरंभ करते हैं। परन्तु कार्य की व्यापकता एवं दुर्गमता के मद्देनजर श्री हनुमानजी तुरंत आगे बढ़कर समुद्र में ड़ाले जानेवाले प्रत्येक पाषाण पर स्वयं ‘श्रीराम’ नाम लिखने लगते हैं। श्रीरामनाम से निर्जीव एवं भारी भरकम पाषाण भी पानी में डूबते नहीं बल्कि, तैरते हैं और उनके समुदाय से समुद्र पर सेतु बांधा जाता है। श्रद्धावान जब रामनाम बही लिख रहे होते हैं तब उनकी भी जन्मजन्मांतर की यात्रा में से अनेक सुंदर सेतु इसी तरह बडी सहजता से श्री हनुमानजी बँधवा लेते हैं, ऐसी श्रद्धावानों की भावना है।

इस रामनाम बैंक के महत्व के बारे में सद्गुरु श्री अनिरुद्ध कहते हैं, ‘अनिरुद्धाज्‌ युनिवर्सल बैंक ऑफ रामनाम’ भगवान के नामस्मरण का एक महामार्ग है जो सीधेसादे श्रद्धावान को भी सुखी जीवन की राह पर ले जाता है, उसे एक मजबूत आधार देता है।

इस तरह से जप लिखने का करोडों गुना लाभ सभी श्रद्धावान मित्रों को भी मिले इस तडप के कारण ही सद्गुरु श्रीअनिरुद्धजी ने यह रामनाम बही दी है।

रामनाम बही के पाँचों मंत्र जागृत हैं, रसमय हैं। हनुमानजी चिरंजीव हैं और वे निरंतर रामनाम जपते रहते हैं। जब हम रामनाम का उच्चारण करते हैं तब वह रामनाम अपनेआप हनुमानजी के उच्चारण में समाविष्ट हो जाता है। संक्षिप्त में, रामनाम बही लिखनेवाले हम अकेले नहीं होते बल्कि, यह नाम ‘जो’ निरंतर उच्चार रहे हैं उन हनुमानजी से हम सहजता से जुड़ जाते हैं, यह महत्त्वपूर्ण लाभ रामनाम बही लिखने से हमें मिलता है।

कुछ विशेष अवसरों पर अर्थात जन्मदिन, शादी -ब्याह के निमित्त अथवा अपने आप्तों के सुख एवं समृद्धि की प्राप्ति हेतु उनके नाम बही लिखकर जमा की जा सकती है। सद्‍गुरु ने इस रामनाम बैंक की ऐसी रचना कर रखी है कि, जो श्रद्धावान यह बही लिखता है उसे भी तथा जिसके नाम यह बही लिखी जाती है उसे भी इसका लाभ होगा। श्रद्धावानों की ऐसी भावना है कि, मृत व्यक्ति के नाम यदि रामनाम बही लिखी जाती है तो उस मृत व्यक्ति को आगे अधिक अच्छी गति प्राप्त होती है।

रामनाम बही लिखते समय लिखनेवाले के हाथों से नवविधा भक्ति में से श्रेष्ठ ‘श्रवण’ भक्ति होती ही है क्योंकि, नाम लिखते समय आँखों से वह पढ़ा भी जायेगा, मन से जप उच्चारा जाएगा और साथ ही साथ उसका सहज ही श्रवण भी होगा, इसीलिए रामनाम बही सहज भक्ति, ध्यान का पवित्र साधन है।

अंजनामाता बही

भगवंत से सामीप्य अधिक बढे तथा भक्तिमार्ग पर अधिकाधिक और रफ्तार से प्रगति हो सके, इसलिए सद्गुरु श्रीअनिरुद्धजी ने सन २०११ में ’श्रीवरदचण्डिका प्रसन्नोत्सव’ में ‘अनिरुद्धाज युनिवर्सल बैंक ऑफ रामनाम’ को एक अनोखा उपहार दिया और वह अनोखा उपहार था ‘अंजनामाता बही’। 

अंजनामाता के (आदिमाता अंजनी के) पुत्र हैं महाप्राण हनुमानजी। ये एकमात्र ‘हनुमानजी’ ही ऐसे हैं जिन्होंने ‘स्वाहा’ (पूर्ण समर्पण) एवं ‘स्वधा’ (पूर्ण स्वावलंबन, स्वयंपूर्णता) दोनों गुणों को धारण किया है। इसीलिए स्वधाकार प्राप्त करने हेतु ‘ॐ हरि मर्कटाय स्वाहा’ नामक मंत्र हनुमानजी के बाएं चरणतले लिखा जाएगा ऐसी रचना इस बही में की गई है।

सदस्यता एवं लाभ

‘रामनाम’ और इसके साथ ही साथ अन्य जप लिखना ही इस अनोखी बैंक का भक्तिचलन है। कम से कम एक बही लिखकर जमा करने पर इस बैंक की सदस्यता पाई जा सकती है। सदस्य बनने पर प्रत्येक श्रद्धावान को एक पासबुक दिया जाता है।

सद्‌गुरु श्री अनिरुद्ध (बापू) कहते हैं कि, “श्रद्धावान को जब संकट की घड़ी में मदद की, आधार की वास्तव में जरूरत होती है, तब सद्‌गुरुतत्त्व, वह परमतत्व उसे इस ’भक्ति बैंक’ से आवश्यकता अनुसार सहायता निश्चितरूप से प्रदान करेंगे।” जिसका उसके सद्‌गुरु पर जितना प्रेम है उसे उतने प्रमाण में भक्तिरुपी ब्याज सहायता स्वरूप प्राप्त होता है।

बैंक के कामकाज का वर्ष अनिरुद्ध पूर्णिमा (कार्तिक पूर्णिमा) से अनिरुद्ध पूर्णिमा (कार्तिक पूर्णिमा) तक है। सभी ‘सद्‌गुरु अनिरुद्ध उपासना केन्द्र’ इस बैंक की शाखाएँ हैं। यह बैंक युनिवर्सल होने के कारण श्रद्धावान अपनी लिखकर पूरी की गई बही किसी भी शाखा में जमा करा सकते हैं।

हर किसी को अपनी बही स्वयं ही लिखकर पूर्ण करनी होती है। रामनाम बही के पहले पन्ने पर (अर्पण पत्रिका पर) अपना पूरा नाम, खाता क्रमांक तथा बही किसके लिए लिखी गई है यह जानकारी होती है। श्रद्धावानों द्वारा इस तरह जमा की गई प्रत्येक बही के पहले पन्ने (अर्पण पत्रिकाएं) हर महीने की पूर्णिमा के दिन अथवा एकादशी के दिन एकसाथ पूजे जाते हैं।

एक वर्ष में श्रद्धावानों द्वारा कम से कम १८ बहियाँ जमा किए जाने पर उन्हें उस वर्ष के लिए बैंक की सदस्यता प्रदान की जाती है। खाता खोलने के दिन से लेकर पहले पाँच वर्षों में १५० बहियाँ जमा करने पर श्रद्धावान बैंक का आजीवन सदस्य बन जाता है। बही लिखनेवाले श्रद्धावान द्वारा निश्चित संख्या में बहियां जमा कराने पर विशिष्ठ लाभ प्राप्त होते हैं। श्रद्धावानों द्वारा जमा की गई इन रामनाम बहियों से ही गणेशमूर्तियां एवं सच्चिदानंद पादुकाएं बनाई जाती हैं। इसीलिए यह ‘अनिरुद्धाज्‌ युनिवर्सल बैंक ऑफ रामनाम’ भक्ति के पवित्र साधन के साथ साथ प्रत्यक्ष जीवन में अपने इर्दगिर्द पर्यावरण की सुरक्षा में भी महत्त्वपूर्ण योगदान प्रदान करता है।

सद्‌गुरु श्री अनिरुद्ध द्वारा २००५ में शुरु की गई इस अनोखी बैंक के खाताधारक बनकर आज की तारीख में लाखों श्रद्धावान  भक्तिमार्ग की सहज, आसान यात्रा का आनंद उठा रहे हैं।

डिजिटल रामनाम बही

बदलते हुए दौर के मद्देनजर इस रामनाम बही का अनोखा स्वरूप सद्गुरु श्रीअनिरुद्धजी के मार्गदर्शन अनुसार श्रद्धावानों के लिए उपलब्ध किया गया।

श्रद्धावानों का बढ़ता हुआ प्रतिसाद एवं टैकनॉलॉजी के इस्तेमाल से ७ अगस्त २०१८ को ’अनिरुद्धाज युनिवर्सल बैंक ऑफ रामनाम’ का अत्याधुनिक एवं प्रगत ‘डिजिटल’ संस्करण प्रस्तुत किया गया। स्मार्ट फोन्स एवं टैब में सर्वाधिक इस्तेमालवाले ‘ऐन्ड्रॉईड’ प्रणाली पर आधारित ‘ऑनलाईन/डिजिटल रामनाम बही’ उपलब्ध की गई। ‘ऐप्लिकेशन’ यानी ‘ऐप’ के स्वरूप में लाए गए इस डिजिटल संस्करण के रुप में रामनाम की संपूर्ण बैंक ही अब सीधे श्रद्धावानों के हाथों में आ पहुँची है।

गुगल के Play Store पर ‘https://play.google.com/store/apps/details?id=com.ramnaam_bank.ramnaambook‘ इस संकेत स्थल पर यह ऐप सभी के लिए उपलब्ध है। इस ऐप द्वारा ‘अनिरुद्धाज युनिवर्सल बैंक ऑफ रामनाम’ में नया अकाऊंट (खाता) खोलना, रामनाम की बही लेना और रामनाम लिखना सबकुछ आसानी से किया जा सकता है; वह भी बिलकुल बैठे-बैठे। बही लेने पर इंटरनेट के बिना भी अर्थात ‘ऑफलाईन’ होते हुए भी रामनाम लिखने में बाधा नहीं आएगी इस बात का ध्यान ‘ऐप’ में रखा गया है। बही पूर्ण हो जाने पर उसे सहजता से अपने अकाऊंट में ‘ऐड’ होने की एवं खाता अपडेट करने की सुविधा भी ऐप में उपलब्ध है।