पुराना वही सोना (ओल्ड इज गोल्ड)

ओल्ड इज गोल्ड (पुराना ही सोना है) यह एक अंग्रेजी कहावत है। कई बार कोने-कूचे में रखी गई या उपयोग में न आनेवाली कई चीज़ें अचानक इतनी उपयोगी लगने लगती हैं कि उस समय उनकी कीमत सोने से कम नहीं होती। आज का दौर ‘इस्तेमाल करो और फेंक दो’ (Use and Throw) का है। पर ऐसा होते हुए भी अनुभव के आधार पर साकार होनेवाले ‘ओल्ड इज गोल्ड’ कहावत का महत्त्व अबाधित है। सन २००२ में सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापूजी ने इसी कहावत से प्राप्त बोध पर आधारित ‘ओल्ड इज गोल्ड’ नामक उपक्रम की घोषणा की।

३ अक्तूबर २००२ के दिन तेरह-सूत्री कार्यक्रम की घोषणा के दौरान बापूजी ने इसमें से एक सूत्र ‘वस्त्र योजना’ के बारे में घोषणा करते हुए ‘ओल्ड इज गोल्ड’ नामक उपक्रम की संकल्पना भी प्रस्तुत की। इस उपक्रम की घोषणा करके आसान से कार्यों द्वारा हम किस तरह अपनी सामाजिक जिम्मेदारी निभा सकते हैं, बापूजी ने श्रद्धावानों को इस बात का अहसास कराया।

देश में सामाजिक खाई इतनी गहरी है कि कई ग्रामीण इलाकों में लोगों के पास पहनने के लिए पर्याप्त कपड़े भी नहीं होते, बच्चों के पास खिलौने नहीं होते, शिक्षा पाने के लिए पुस्तकें तथा स्कूली वस्तुएं नहीं होतीं। पर जिनके पास यह चीजें पर्याप्त मात्रा में होती हैं, वे इन चीजों की कद्र नहीं करते। छोटे बच्चों के खिलौने यूँही कोनों में पड़े रहते हैं। अथवा वे कबाडी को बेचे जाते हैं। अगली कक्षा में जाने पर पिछले साल की पुस्तकों की भी यही स्थिति होती है। परंतु जिन्के पास यह चीजें खरीदने की क्षमता नहीं होती उनके लिए हमारी अवांछित अथवा बेकार चीजें सोने सी साबित होती हैं। अगर अपनी वे पुरानी चीजें जैसे पुराने कपड़े, खिलौने, पुस्तकें, आदि इस योजना के अन्तर्गत दी जाएं तो कैसा बदलाव आ सकता है यह भी बापूजी ने समझाया। इसके पश्चात्‌ सद्‌गुरु बापूजी के मार्गदर्शन अनुसार सद्‍गुरु अनिरुद्ध उपासना फाऊंडेशन ने ‘ओल्ड इस गोल्ड’ नामक प्रकल्प की शुरुआत की।

‘सद्‌गुरु अनिरुद्ध उपासना फाऊंडेशन’ के मान्यता प्राप्त उपासना केन्द्रों पर तथा ‘श्री हरिगुरुग्राम’ (न्यू इंग्लिश स्कूल, बांद्रा, मुम्बई) में हर गुरुवार को श्रद्धावानों द्वारा स्वेच्छा से लाए गए पुराने कपड़े स्वीकारे जाते हैं। यह कपडे स्वीकारते समय कार्यकर्ता इस बात की पुष्टि करते हैं कि, वे कपड़े साफसुथरे हैं और फटे हुए नहीं हैं। पुराने परंतु साफसुथरे कपड़े ग्रामीणों को प्राप्त हों, यह संस्कार बापूजी द्वारा श्रद्धावानों पर किए गए हैं।

ओल्ड इज गोल्डसेवा का व्यवस्थापन तथा कार्यान्वयन पद्धति

कपड़े केन्द्रों पर जमा हो जाने के पश्चात्‌ श्रद्धावान उन कपड़ों को आयु वर्ग अनुसार छांटते हैं। छोटे बच्चों के, मध्यम उम्र के स्त्री-पुरुषों के तथा वृद्ध स्त्री-पुरुषों के कपडे आयु वर्ग अनुसार छांटे जाते हैं। इसके पश्चात हरएक केन्द्र के श्रद्धावान उनके विभाग के ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर सर्वेक्षण करते हैं।

प्रत्येक ज़रूरमंद परिवार में कितने लोग हैं, इसकी गिनती की जाती है। उनमें महिलाएं, पुरुष एवं छोटे बच्चे कितने हैं इन सभी बातों का गहराई से अध्ययन किया जाता है। सर्वेक्षण के पश्चात जमा किए गए कपड़े पर्याप्त हैं कि नहीं, इस बात पर गौर किया जाता है। कपड़े यदि पर्याप्त मात्रा में नहीं हैं तो केन्द्रों पर श्रद्धावानों से अधिक कपडों के लिए बिनति की जाती है। जब कपड़े पर्याप्त मात्रा में जमा हो जाते हैं तब कपडे आयु वर्ग अनुसार छाटे जाते हैं।

परिवारों के मुताबिक गठरियां बांधी जाती हैं। हरएक परिवार की गठरी में उस परिवार के सभी सदस्यों के लिए कपड़े होते हैं। इसके पश्चात हर सप्ताह उन परिवारों को एक नंबर दिया जाता है और उस नंबर से वह परिवार पहचाना जाता है अथवा गठरी पर उस परिवार का नाम लिखा जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है कि कौनसी गठरी किस परिवार को देनी है इसका पता चलता है।

सभी गठरियों को एकसाथ बाँधकर टैम्पो अथवा गाड़ी में रखकर सर्वेक्षण किए गए गाँवों में ले जाया जाता है। उस गाँव में पहुंचने पर पूर्वनियोजित मध्य स्थान पर श्रद्धावान हरएक परिवार का नाम पुकारते हैं और पुकारे गए परिवार का कोई एक सदस्य आगे बढकर अपनी गठरी स्वीकारता है। तब उनके चेहरों पर खुशी झलकती है। वे लोग बडे संतोष से गठरी अपने घर ले जाते हैं। उनके चेहरे का यह भाव हमें बहुत कुछ सिखाता है।

इस योजना के अन्तर्गत केवल कपड़े ही नहीं बल्कि पुराने बरतन एवं खिलौने भी स्वीकारे जाते हैं। गरीब परिवारों को इन बरतनों की तथा उनके बच्चों को इन खिलौनों की बहुत जरूरत होती है।

पिछले कुछ वर्षों से ‘ओल्ड इज गोल्ड’ की व्यापकता बढ़ गई है। कोल्हापुर वैद्यकीय एवं आरोग्य शिविर की सेवा के दौरान  ‘ओल्ड इज गोल्ड’ अतंर्गत संस्था कपड़े, खिलौने तथा बरतन बाँटती है।

कोल्हापुर के पेंड़ाखले गाँव में वैद्यकीय शिविर का आयोजन किया जाता है। इस शिविर के अन्तर्गत शिविर के कई दिन पहले से कुछ श्रद्धावान सर्वेक्षण के लिए वहां जाते हैं और हर परिवार में कपड़े, बरतन, खिलौने, आदि की कितनी ज़रूरत है इसका सर्वेक्षण करते हैं। फिर उन परिवारों की जरुरतों के अनुसार इन कपड़ों की गठरियां बांधी जाती हैं। शिविर के दिन श्रद्धावानों द्वारा ज़रूरतमंदों को कपड़े, बरतन, खिलौने एवं ज़रूरत की अन्य चीजें सौंपी जाती हैं। कुछ गाँवों में स्वयं परमपूज्य नंदाई एवं परमपूज्य सुचितदादा जाकर उन ग्रामीणों में अपने हाथों से वे वस्तुएँ बांटते हैं। तब उन ग्रामिणों के चेहरे पर अवर्णनीय खुशी होती है।

श्री अनिरुद्ध उपासना फाऊंडेशन द्वारा सद्‌गुरु श्री अनिरुद्ध बापूजी की प्रेरणा से शुरु किए गए इस ‘ओल्ड इज गोल्ड’ प्रकल्प के कारण आज अनेक परिवारों को कपड़े एवं ज़रूरत की वस्तुओं का लाभ प्राप्त हुआ और यह परिवार बापूजी के निरपेक्ष प्रेम की छाया में सुख से रह रहे हैं। और विशेष बात तो यह है कि, श्रद्धावानों के पास पडी हुई कई पुरानी चीजें सोना बन गईं।