हनुमान पुर्णिमा

हनुमानजी, बजरंगबली, पवनसुत, अंजनीसुत, केसरीनंदन ऐसे असंख्य नामों से भारत में अनगिनत श्रद्धावान जिनका पूजन, जाप आदि नित्यप्रति करते हैं साथ ही उनके स्तुति वाले स्तोत्र आनंदपूर्वक गाते हैं, वही हैं श्रीहनुमानजी। संकटमोचन के रूप में किसी भी अड़्चन में फॅस जाने पर श्रद्धावान सर्वप्रथम दिल से जिसे पुकारता है वे हैं, श्रीहनुमानजी। बजरंगबली। बल एवं सामर्थ्य के देवता के रूप में बल उपासक जिन्हें अपना मानते हैं, वे हैं श्रीहनुमानजी। भारत में चैत पूर्णिमा को ही ‘हनुमान पूर्णिमा ’ कहकर सर्वत्र यह उत्सव जोर-शोर के साथ मनाया जाता है। हनुमानजी के असंख्य नामों में से जो सर्वश्रेष्ठ नाम माना जाता है वह है,‘सीताशोकविनाशक ’। चैत पूर्णिमा के दिन ही ‘हनुमान पूर्णिमा’ क्यों मनाई जाती है इसके साथ ही एक कथा जुड़ी हुई है। सद्गुरुश्रीअनिरूद्ध बापू ने श्रद्धावानों को अपने प्रवचन के माध्यम से कई बार यह कथा समझाकर बतलायी है, साथ ही इस भीमरूपी महारुद्र की भक्ति करनी भी सिखलाई है।

बापूजी ने श्रद्धावानों को हनुमान जयंती का महत्त्व बतलाया है। ‘रामायण की कथा यदि हम ठीक से सुनते हैं तो हमें पता चलेगा कि, जिस दिन हनुमानजी का जन्म हुआ उस वक्त कुछ पल में ही सूर्य को एक लाल रंग का फल समझकर उसे खाने के लिए हनुमानजी आकाश में लपक पड़े(की ओर छलॉग लगादी)। उसी समय राहू भी सूर्य को निगलने आया था, अर्थात उस दिन सूर्यग्रहण था और सूर्यग्रहण अकसर अमावस्या के दिन ही होता है’।
‘हनुमानजी जिस दिन अशोकवाटिका में रावण के बंदिवास में बंदिस्त रहने वाली माता जानकी से पहली बार मिलते हैं और उन्हें श्रीराम की अंगूठी देकर स्वयं रामदूत होने की अपनी पहचान सिद्ध करते हैं। उसी समय माता जानकी प्रसन्न होकर उन्हें अपना पुत्र एवं तात के रूप में भी उनका स्वीकार करती हैं। वह दिन अर्थात यह हनुमान पूर्णिमा ।

इसी दिन ‘श्रीराम के आराध्य देव रहने वाले शिव एवं उसी शिव के इस महारुद्र स्वरूप को माता जानकी ने पहचान लिया। हनुमानजी ने अशोकवन में माता जानकी का शोकहरण किया, इसीलिए हनुमानजी को ‘सीताशोकविनाशन’ नाम प्राप्त हुआ। इसी दिन हनुमानजी रावण से भी मिले। उसे उपदेश देकर उसकी गलती को सुधारने का अवसर भी प्रदान किया। साथ ही अहंकारवश हनुमानजी की पूंछ में आग लगवाने वाले रावण के सुवर्ण नगरी लंका का भी दहन कर दिया।’ यही है हनुमान पूर्णिमा का महात्म्य।

इसी तरह हनुमानजी ने चैत महीने की पूर्णिमा के दिन से अशुभ कार्यो का नाश करना आरंभ कर दिया, और यह शुभ दिन सही मायने में देखा जाय तो हनुमानजी का जनमदिन हैं।

हनुमानजी ने भारत के दक्षिण छोर से एक ही उड्डान में लंका जाकर वहां पर जानकी माता से मिलकर श्रीराम का संदेश पहुंचाने के पश्चात् रावण को प्रिय लगने वाले अशोकवन को उजाड़्कर लंका दहन कर पुन: लौटकर श्रीराम से आकर मिलने की कथा अर्थात ‘सुंदरकांड’। इस ‘सुदंरकांड ’का पठन करने का, नित्यप्रति नियमितरूप प्रतिदिन कम से कम तीन बार ‘हनुमानचालिसा’बोलना, साथ ही ‘बजरंगबली स्तोत्र ’एवं ‘पंचमुख हनुमत्कवच’ हमेशा बोलते रहने का मार्गदर्शन बापूजी ने श्रद्धावानों को किया है। प्रवचन के माध्यम से इनका महत्त्व एवं हनुमानजी के इस जपस्तोत्र का अर्थ भी अनेकों बार समझाया है। बापू के मार्गदर्शन के अनुसार असंख्य श्रद्धावान इस स्तोत्र का पठन नित्यप्रति नियमितरूप से करते हैं।

सद्गुरु श्रीअनिरूद्धजी ने रत्नागिरी के ‘अतुलितबलधाम ’ में पंचमुखी हनुमानजी की मूर्ति की स्थापना की है। हनुमान पूर्णिमा का भक्तिमय उत्सव वहां पर हर वर्ष मनाया जाता है। हनुमानजी श्रीअनिरूद्धजी के ‘रक्षकगुरु ’ हैं। हर गुरुवार के दिन श्रीहरिगुरुग्राम में मुख्य स्टेजपर उपासनाप्रतिकों के साथ ही श्री हनुमानजी की बड़ी तस्वीर भी लगाई जाती है। ‘ॐ श्रीरामदूताय हनुमंताय महाप्राणाय महाबलाय नमो नम:।’ यह जप गुरुवार के उपासना में सामूहिक तौर पर किया जाता है। यही जप हनुमान पूर्णिमा के दिन अखंडरूप में श्रीअतुलितबलधाम में किया जाता है। असंख्य श्रद्धावान इस उत्सव में शामिल होते हैं।

‘श्रीअनिरुद्ध गुरुक्षेत्रम’ में होने वाले क्षमा यंत्र के अधिष्ठात्री देवता श्रीहनुमानजी ही हैं। चण्डिकाकुल में भी हनुमानजी आत्मलिंग के साथ विराजमान हैं हर गुरुवार के दिन श्रीहरिगुरुग्राम में होने वाले श्रीशब्दध्यानयोग में होने वाले आज्ञाचक्र के देवता हनुमानजी ही हैं। सद्गुरु श्रीअनिरूद्धजी ने शीला को कुरेदकर हनुमानजी की मूर्ति बनाई है जिसका दर्शन सभी श्रद्धावान सावनमास में हर शनिवार के दिन अश्वत्थ मारुती पूजन के दौरान जुईनगर गुरुकुल में ले सकते हैं।

हर वर्ष ‘श्रीगुरुचरणमास’ (अर्थात वटपूर्णिमा से गुरुपूर्णिमा तक अर्थात, जेठ महीने की पूर्णिमा से आषाढ़ महीने पूर्णिमा तक, इस समय के दौरान) हर दिन एक बार तो हनुमान चालिसा का पठन करना ही चाहिए। इस माह के दौरान कम से कम एक दिन १०८ बार हनुमान चालिसा का पठन करना चाहिए, यह बापूजी ने श्रद्धावानों से कहा है। इस समय के दौरान हनुमान चालिसा के पठन के महत्त्व से संबंधित तुलसीदासजी की कथा भी बापूजी ने श्रद्धावानों को बतलाई है। इसीलिए असंख्य श्रद्धावान इस समय के दौरान हनुमान चालिसा का पठन अधिक से अधिक करते हैं।

श्रीहनुमानजी हर एक मानव में ‘महाप्राण’ रूप में होते ही हैं। हनुमान अर्थात श्रद्धावानों के ‘रक्षणकर्ता’। विभीषण को राम तक पहुंचाने वाले श्रीहनुमान ही हैं। श्रीराम के कार्य में अपने-आप को कैसे, झोक देना है, उनकी भक्ति कैसे करनी है यह बात हमें हनुमानजी ही सिखाते हैं।

। रामकार्य के लिए वे कुछ भी करने को तत्पर रहते हैं, वानरराज सुग्रीव की मुलाकात श्रीराम से करवाकर बाली द्वारा छीन लिया गया उनका राज्य उन्हें पुन: दिलवाते हैं। वानरसैन्य समक्ष श्रीराम का गुनसंकीर्तन कर उन सभी को रामकार्य में शामिल कर लेते हैं, स्वयं ‘बुद्धिमताम् वरिष्ठम् ’होते हुए भी अंगद के नेतृत्व में जानकीमैय्या को ढूंढ़्ने का कार्य करते हैं। स्वयं को बंधंन में बंधवाकर रावण के दरबार जाने से भी पीछे नहीं हटते, राक्षसों की अवहेलना भी स्वीकारते हैं। ऐसे श्रीहनुमानजी के स्तोत्र, जप आदि का पठन कर श्रद्धावान हर वर्ष हनुमान पूर्णिमा का उत्सव मनाते हैं।

हर एक मानव के भक्तिमार्ग का प्रवास, उसके भक्तिमार्ग पर उठने वाले हर एक कदम श्रीहनुमानजी के मार्गदर्शनानुसार ही आगे बढ़ाये जाते हैं। श्रीहनुमानजी ही श्रद्धावानों की ऊंगली पकड़कर उन्हें भक्तिमार्ग में आगे ले जाते हैं इसीलिए हनुमानजी की भक्ति आवश्यक होती है, यह बात बापूजी ने भक्तों को विस्तारपूर्वक समझायी है। यही कारण है कि हनुमान पूर्णिमा का उत्सव श्रद्धावान बड़े ही आनंद एवं हर्षोल्हास के साथ मनाते हैं।