परमपूज्य सदगुरु श्री अनिरूध्द का जीवनकार्य

परमपूज्य सदगुरु श्री अनिरूध्द का जीवनकार्य

संपूर्ण विश्व आज विनाश की दिशा की ओर आगे बढ रहा है। अखिल मानव समाज जिस प्रगति के उंचे शिखर पर खड़ा है, वहां से अगर उसका थोडा सा भी संतुलन खो जाता है तो स्पष्ट है कि संपूर्ण मानव समाज विनाश की गहरी खायी में गिरकर, उसकी बरबादी संभव हो सकतीं हैं। ऐसे वक्त सत्य, प्रेम, आनंद इस त्रिसूत्री के जीवन मूल्यों को आधार मानकर और पावित्र्य यही प्रमाण है इस मूलतत्त्व का स्विकार करके अज्ञान का अंधेरा दूर करने का ध्येय श्री अनिरूध्द ने अपनी हर एक साँस के साथ, हर एक कृति से, कार्य से जतन किया है।

धर्मक्षेत्र का कुरुक्षेत्र ना हो इसलिए ….

आज श्रीअनिरूध्द का जो कृतनिश्चय है, उसी के अनुसार धर्मक्षेत्र का कुरुक्षेत्र ना हो इस तत्त्व से, उन्हें जो कुछ (कार्य) करना है अपने उस जीवनकार्य को वे समर्थ रुप में आगे बढ़ा रहें हैं।

मर्यादाधर्म संस्थापन :

‘पूरा संसार सुखमय बनाऊँगा, आनंद से भर दूंगा तीनो लोक’ इस पंक्तियों को सार्थक कर देने की दृष्टी से, धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन पुरुषार्थों के साथ ‘भक्ति’ इस पंचम पुरुषार्थ को जोडकर और उसका महत्त्व समझा-बुझाकर, ‘मर्यादा’ इस छ्ठे पुरुषार्थ की आवश्यकता को उन्होंने स्पष्ट कर दिया और इन छह पुरुषार्थों की सहायता से श्रध्दावानों को देवयान पंथ पर चलने के लिए प्रेरित किया। उस के लिए उन्होंने १)सत्यप्रवेश २)प्रेमप्रवास ३)आनंदसाधना इन तीनों पुरुषार्थग्रंथों की रचना कर उसे प्रकाशित किया। आज इन तीनों ग्रंथों के आधार पर सामान्य श्रध्दावान अपने जीवन का समग्र विकास कर सकतें हैं। समग्र जीवन विकास का सूत्र जीवन में लाने की कला सामान्य भक्तों को सिखाकर समर्थ आधार बनने का ब्रीद उन्होंने स्वीकार किया है।

 रामराज्य :

२०२५ में रामराज्य लाना यह परमपूज्य अनिरूध्द का सपना है, ध्येय है और ब्रीद भी है। बापू कहतें हैं कि “यह रामराज्य लाने के लिए पाँच चरण (पाँच स्तर) हैं। पहला स्तर हैं वैयक्तिक अर्थात व्यक्तिगत। दूसरा स्तर हैं आप्त/पारिवारिक स्तर, तीसरा स्तर हैं सामाजिक स्तर, चौथा है धार्मिक स्तर और पांचवा स्तर है भारतवर्ष और जागतिक स्तर पर रामराज्य की स्थापना।

पहले चार स्तरों पर भारत भौतिक और नैतिक दृष्टि से समर्थ हो जाएगा, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से सर्वसमर्थ बन जायेगा और फिर अपने आप ही बाकी बचा हुआ विश्व (जग) जो होगा उसे साथ में लेकर भारत समर्थ राष्ट्र बनेगा ऐसे ध्येय इस की पूर्तिता करने का उद्दिष्ट बापू ने पेश किया है। अनावश्यक अनुष्ठान (कर्मकांड), अंधश्रध्दा और रूढ़ियों की बेड़ी से मुक्त हो कर सिर्फ उचित और आवश्यक क्या है यही बात बापूने परमार्थग्रंथों में लिखा है।

सत्य को अस्वीकृत कर के सर्वसामान्य जन ऐसी परंपराओं के गुलाम बन जातें हैं जो गलत है, और ऐसी गुलामी की बेड़ी से उनके मित्र बाहर निकल आए इसीलिए श्री अनिरूध्द हर एक कृति से, हर एक कार्य से मार्गदर्शन करतें रहतें हैं। श्री अनिरूध्द की गति को कोई भी रोक नही सकता (Unstoppable), बाधा डाल नहीं सकता। श्री अनिरूध्द निग्रही है, स्वतंत्र इच्छा को पूर्णता देनेवालें हैं।

अनिरूध्द मार्ग अथाह, प्रवाही है, क्यों कि वे पूर्ण शुध्द मार्गी हैं, वे सुस्पष्ट हैं, और इसीलिए उसमें समस्या नहीं और सवाल (प्रश्न) भी नहीं हैं।

कलियुग में सर्वसामान्य लोगों को दिलासा :

‘मैं आपही में से एक हूँ’ ऐसा परमपूज्य बापू स्वयं के बारे में कहतें हैं, पर यही तो उनका अनोखापन, उनकी विशिष्टता हैं। एक परिवारप्रेमी और सभी से मित्रता के रिश्ते से स्वयं को बांध लेनेवाले हैं। सब पर निरामय प्रेम करनेवाले ऐसे ये अनन्यप्रेमस्वरूप मित्र हैं। हर एक को सुखी होते हुए देखकर सुख माननेवाले ये कृपासिंधु! करोड़ों लोगों के यही माता-पिता हैं ऐसी प्रचिती देनेवाला वरदहस्त! वे धोखा न देनेवाले मित्र तो हैं ही पर साथ में सदगुरु की भूमिका से मन:सामर्थ्य देनेवाले ऐसे मन:सामर्थ्यदाता भी हैं। लोगों को दिपस्तंभ जैसा योग्य मार्ग दिखानेवाले ये पापतापनिवारक सामर्थ्यसिंधु! हर एक मानवी जीव की विचारस्वतंत्रता और कर्म स्वतंत्रता पूरी तरह से स्वीकार कर के (Common interest of common man) उतने ही सामर्थ्य से उनके संकट लीलाओंद्वारा से दूर करनेवाले ये महाबलोत्कट!

इसीलिए श्री अनिरूध्द विशेष रूप से अपने सभी श्रध्दावानों को दिलासा देनेवाले संकल्प पूरा करने के लिए बध्द हैं। उस के लिए ‘तू और मैं मिलकर इस विश्व में कुछ भी नामुमकीन नहीं’ यह उनका वचन, उनके संपूर्ण जीवनकार्य (His mission) का सार है।