श्रीअनिरुद्ध उपासना फाऊंडेशन यह एक सेवाभावी (चॅरिटेबल – Not for Profit) संस्था होकर, कंपनी अधिनियम १९५६ के कलम २५ के तहत, अप्रैल २००५ में उसकी स्थापना हुई। मुख्य रूप से देश के विभिन्न भागों में और विदेशों में सद्गुरु श्री अनिरुद्ध उपासना केंद्रों की स्थापना करना और उनके माध्यम से अनिरुद्धजी के आध्यात्मिक मूल्यों का प्रचार एवं प्रसार करना और उस संदर्भ में सेवाभावी कार्य करना, यह संस्था का उद्देश है।
प्रार्थना से प्राप्त होनेवाली शक्ति एवं उसके साथ ही होनेवाली सेवा यही सदगुरु श्रीअनिरुद्ध बापू भक्तिमय सेवा उपक्रम की बुनियाद हैं। भक्ती एवं समाज के लिए सेवा ये दोनों ही बातें एकत्रित रुप में होनी ही चाहिए और यही हम सभी की सामाजिक जिम्मेदारी है। यही वे हमें अकसर समझाते रहते हैं। इसी तत्वपर आधारीत श्री अनिरुद्ध उपासना फाऊंडेशन की ओर से प्रस्तुत किये जानेवाले विविध उपक्रमों में श्रद्धावान आनंद, उत्साह के साथ सहभागी होते हैं।
सांघिक उपासना की सुंदर संकल्पना को पुनरुज्जीवित करने के उद्देश्य से सद्गुरु श्रीअनिरुद्ध बापूने अनेक स्थानों पर अनेकों उपासना केन्द्रों की स्थापना की दुनिया के कोने-कोने में विविध स्थानों पर उपासना केन्द्रों के माध्यम से भक्तिमय वातावरण निर्माण कर, आज उनमें अनिरुद्ध बापूद्वारा दिए गए सांघिक उपासना श्रद्धावान करते हैं। जो स्पंदन उत्पन्न होते हैं वे हमारे देह के लिए ही नहीं बल्कि हमारे लिए भी उपकारी साबित होते हैं।
“अल्फा टू ओमेगा” यह अपना समाचार पत्र श्री अनिरुद्ध उपासना फाऊंडेशन, अनिरुद्धाज् ऐकेडमी ऑफ डिझास्टर मैनेजमेंट’ तथा संलग्न संस्थाओं से संबंधित हाल ही हुए तथा आगामी कार्यक्रमों के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान करनेवाला एक माध्यम है। इस समाचार पत्र के माध्यम से अपनी संस्था की ओर से हाल ही में की गई तथा नजदीकी भविष्य में की जानेवाली भक्तिमय सेवाओं के विवरण होंगे।
संस्थाद्वारा की जानेवाली भक्ति-सेवाओं के बारे में अधिक जानकारी पाने की इच्छा रखनेवाले हरएक तक संस्था संबंधी जानकारी पहुँचे इसी उद्देश्य से यह समाचारपत्र बनाया गया है। इसलिए यह जानकारी सभी के लिए प्रसारित न करते हुए केवल जिन्हें अपनी संस्था के कार्य जानने की सचमुच इच्छा है उन्हीं तक ही यह प्रसारित करने पर जोर दिया गया है। जो श्रद्धावान दूर रहते हैं पर वे संस्था की सभी गतिविधियां जानने के उत्सुक हैं, उनके लिए यह भौतिक अंतर घटाने के उद्देश्य से भी यह समाचारपत्र शुरु किया जा रहा है। इस समाचारपत्र में उपासना केन्द्रों तथा श्रद्धावानों द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में भक्तिमय सेवाओं के अन्तर्गत की गई सराहनीय घटनाओं का विशेष गतिविधियों के रूप में समावेश किया जायेगा। इस समाचारपत्र का यह प्रथम प्रकाशन होने के कारण इसमें अनिरुद्ध पूर्णिमा से दत्तजयंती के दौरान की गतिविधियों का समावेश होगा। तत्पश्चात यह समाचारपत्र हर महीने प्रकाशित किया जायेगा। इस समाचारपत्र के प्रति एवं इसके पश्चात प्रकाशित होनेवाले सभी समाचार पत्रों के प्रति आपके अभिप्रायों का निश्चितरूप से स्वागत किया जायेगा। ताकि बापू के श्रद्धावान मित्रों की ज़रूरतों को ध्यान में रखकर, जानकारी एवं प्रस्तुतिकरण अधिक प्रभावशालि किया जा सके।
श्रीरामनवमी का सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण अंग है रामजन्म समारोह। परमपूज्य सद्गुरु अनिरुद्ध के मार्गदर्शन अनुसार दोपहर को श्रीराम जन्म पारंपारिक तरीके से मनाया जाता है। सद्गुरु श्रीअनिरुद्ध के शैशवावस्था में जिस झूले का उपयोग किया गया था उसी झूले का उपयोग श्रीराम जन्म के समय पालना के रूप में किया जाता है। ‘कोई गोविन्द लो, कोई गोपाल लो’ के जयघोष एवं श्रीराम के झूले के गीत में सभी श्रद्धावान सहभागी होते हैं। इसके पश्चात् रामचंद्र का ‘श्रीराम’ कहकर नामकरण किया जाता है साथ ही ‘सुठंवडा’ भी प्रसाद के रूप में बाँटा जाता है।