महिलाओं का आत्मबल विकास केंद्र

आज के दौर में जहां महिलाएं पुरुषों के साथ अनेक क्षेत्रों में कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। पर आज भी कई महिलाएं अकेले यात्रा करने से घबराती हैं, अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने से, विरोध करने से कतराती हैं। तो दूसरी ओर कुछ महिलाएं बहुत कुछ करना चाहती हैं परन्तु ‘मैं कर पाऊंगी या नहीं’ उनके मन में यह डर रहता है। ऐसे में यदि एक महिला आगे बढ़कर इन महिलाओं में बदलाव लाने का निश्चय कर ले तो! हां, एक महिला… एक महिला ही दूसरी महिला को समझ सकती है, उसकी दिक्कतें समझ सकती है, उसे ढाल सकती है, उसमें आवश्यक बदलाव ला सकती है। हर महिला में सामर्थ्य होता ही है, केवल उसे अपने सामर्थ्य का अहसास दिलाकर, उसके आत्मविश्वास को जगाकर, उस महिला को समर्थ बनाने को ही ‘आत्मबल’ कहते हैं।

महिलाओं में विशेष कौशल छिपा होता है। समय के रहते उन्हें मौका मिले तो वे महिलाएं आगे बढ़ ही जाती हैं। ‘आत्मबल’ में यही होता है। मगर वास्तव में आत्मबल है क्या? यह एक ऐसी विशाल यात्रा है जिसकी व्याख्या नहीं एक वाक्य में नहीं की जा सकती। इसके लिए ‘आत्मबल’ के वर्ग में प्रवेश लेना पडे़गा।

आत्मबल वर्ग की स्थापना:

सद्‌गुरु श्रीअनिरूद्धजी एवं उनकी पत्नि श्रीमति स्वप्नगंधा (नंदा) अनिरूद्ध जोशी के मार्गदर्शन अनुसार महिलाओं के आत्मबल वर्ग की स्थापना की गई। ‘श्री साई समर्थ विज्ञान प्रबोधिनी’ नामक संलग्न संस्था द्वारा कई उपक्रम आयोजित किए जाते हैं। इनमें से महिलाओं के लिए उपक्रम है ‘आत्मबल-विकास केंद्र’। सन १९९८ में पहले आत्मबल वर्ग की धोषणा की गई, उस आत्मबल वर्ग में केवल २८ महिलाएं थीं। सन २०१६-१७ तक १५०० से १६०० महिलाओं ने आत्मबल का प्रशिक्षण पाया है। औरंगाबाद, जलगांव, नंदुरबार की भी महिलाएं आत्मबल वर्ग में शामिल होती हैं। मुंबई के अलावा पूना में भी आत्मबल वर्ग आयोजित किया जाता है।

डॉ. स्वप्नगंधा (नंदा) अनिरूद्ध जोशी का परिचय:

सौ. स्वप्नगंधा अनिरूद्ध जोशीजी ने मुंबई विश्वविद्यालय से बायोकेमिस्ट्री में पोस्ट-ग्रेजुएट शिक्षा हासिल की है। निसर्गोपचार (Naturopathy) विषय में भी उनकी रुचि है। ब्रेल भाषा में भी निपुणता हासिल कर उन्होंने स्वयं तीन वर्षों तक ब्रेल भाषा सिखाई है।

पिछले कई वर्षों से डॉ. श्रीमति स्वप्नगंधा जोशी महिलाओं में आत्मबल बढ़ानेवाला ‘आत्मबल’ नामक उपक्रम सफलतापूर्वक चलाती आ रही हैं। इस उपक्रम के कारण महिलाओं में कमाल का बदलाव दिखाई दे रहा है। जिन महिलाओं को अंग्रेजी भाषा का जरासा भी ज्ञान नहीं है उन्हें रोजमर्रा के जीवन में जितनी आवश्यकता है उतनी अंग्रेजी आत्मबल वर्ग में सीखाई जाती है, इसकी वजह से महिलाओं के मन में अंग्रेजी के प्रति डर निकल जाता है।

आत्मबल वर्ग एवं उसकी रूपरेखा:-

प्रवेश प्रक्रिया एवं उसकी अवधि:
प्रतिवर्ष श्रीहरिगुरुग्राम (बांद्रा, मुम्बई) एवं शनिवार के दिन उपासना केंद्रों पर आत्मबल वर्ग के लिए नाम दर्ज कराने की धोषणा की जाती है। तत्पश्चात आत्मबल वर्ग के लिए महिलाओं के नाम दर्ज किए जाते हैं। आत्मबल वर्ग के लिए महिलाओं का चयन नंदाई के मार्गदर्शन अनुसार होता है। आत्मबल वर्ग की अवधि छ: महीनों की होती है। हर शनिवार को श्रीहरिगुरुग्राम (न्यू इंग्लिश स्कूल) बांद्रा में शाम के ३ बजे से ७ बजे तक यह वर्ग आयोजित किए जाते हैं।

१) नंदाई का मार्गदर्शन:
नंदाई महिलाओं से अनेक विषयों पर बात-चीत करती हैं। रिश्ते-नाते, समय की सार्थकता, घर में बिजली के उपकरणों की देख-भाल, साफ-सफाई, रसोईघर के टिप्स, पाक-कला, व्यक्तित्व विकास जैसे विषयों पर नंदाई का मार्गदर्शन होता है। घर और नौकरी दोनों में संतुलन बनाए रखने के महिलाओं को कडी मेहन करनी पडती है। ऐसी स्थिति में बच्चों तथा परिवार के लिए समय कैसे निकालें? इस पर भी नंदाई मार्गदर्शन करती हैं। इसके अलावा घर का सारा कामकाज समय पर पूरा करके बचा हुआ समय कहां और कैसे बिताया जाए, अपने कौशल का जतन कैसे करना है इस संबंध में भी नंदाई महिलाओं को मार्गदर्शन करती हैं।

अंग्रेजी भाषा का ज्ञान आज के समय की मांग है। वरना बदलते हुए भूमंडलीकरण के दौर में हम पिछड जायेंगे। बैंक, पोस्ट ऑफिस, या अन्य कार्यालयों में अस्खलित अंग्रेजी में बात-चीत करने का आत्मविश्वास का होना चाहिए। इसलिए आत्मबल के वर्ग में अंग्रेजी भाषा पर विशेष जोर दिया जाता है। जिन महिलाओं को जरासा भी अंग्रेजी का ज्ञान नहीं होता उन पर विशेष ध्यान दिया जाता है और जो थोडीसी अंग्रेजी जानते हैं उन्हें यथा-योग्य वार्तालाप का प्रशिक्षण दिया जाता है।

तकरीबन १५ से २० महिलाओं के गुट को किसी एक विषय पर प्रोजेक्ट दिया जाता है। तत्पश्चात उसकी विस्तृत जानकारी पाकर प्रत्यक्ष मिलकर उन्हें उस पर एक नाटक प्रस्तुत करना होता है। इसके अलावा नाकाम चीजों का इस्तेमाल से कुछ मॉडेल्स भी बनाने होते हैं। इस प्रोजेक्ट में संस्था के तीर्थक्षेत्र, बैंक / डाक-घर के व्यवहार, होलसेल मार्केट, एस. टी. बस, रेलवे एवं एअरलाईन्स बुकिंग, आदि का समावेश होता है। इसकी वजह से महिलाओं के मन में रंगमंच के प्रति डर भाग जाता है। वे आत्मविश्वास से अपने विचार प्रस्तुत कर पाती हैं।

आत्मबल वर्ग में विपत्ति निवारण का विशेष कार्यक्रम होता है। इसके अंतर्गत ‘अनिरूद्धाज ऐकेडमी ऑफ डिजास्टर मैनेजमेंट’ (एएडीएम) के स्वयंसेवक प्रशिक्षण व्याख्यान एवं प्रदर्शन के माध्य्म से सिखाते हैं कि विपत्ति आने पर क्या किया जाए।

स्त्रीरोगविशेषज्ञों के व्याख्यान, विभिन्न पाक-कलाएं, मायक्रोवेव का उपयोग जैसी सभी बातों का मार्गदर्शन लेक्चर्स द्वारा प्रदान किया जाता है। केचुआखाद बनाने का महत्त्व भी लेक्चर्स द्वारा समझाया जाता है। साथ ही साथ बीज बोने की, पौधों के संवर्धन की जानकारी भी आत्मबल कोर्स के दौरान दी जाती है।

हस्तकला की वस्तुएं कम से कम खर्च में सुंदर कैसे बनाई जाएं इसके प्रयोग भी आत्मबल वर्ग में सिखाए जाते हैं। कंदील, दीया, आदि वस्तुएं बनाना महिलाओं को इसी आत्मबल वर्ग में सिखाया जाता है। इसी कारण आत्मबल के पश्चात दिवाली में कई महिलाएं बडे़ उत्साह से कंदील, दीए, आदि चीजें अपने घर में ही बनाती हैं।

हस्तशिल्प की वस्तुएं, पाक-कला प्रतियोगिता के उत्तम पदार्थ, प्रोजेक्ट-मॉडेल्स, फाईल्स तथा महिलाओं द्वारा बनाई गई कौशलपूर्ण वस्तुओं की प्रदर्शनी होती है। यह प्रदर्शनी देखने लायक होती है। महिलाओं द्वारा बनाए गए व्यंजनों में से कुछ चुनिंदा व्यंजनों की पुस्तिका भी प्रकाशित की गई है।

हर वर्ष आत्मबल के प्रत्येक बैच की पिकनक आयोजित की जाती है। हरएक के लिए जलपान एवं भोजन की भली-भांति व्यवस्था की जाती है। सभी महिलाएं इस पिकनक का जी भरकर आनंद लूटती हैं।

प्रत्येक महिला को आत्मबल कोर्स पूर्ण करने पर कोर्स का सर्टिफिकेट प्रदान किया जाता है।

आत्मबल स्नेहसम्मेलन-

छ: महीने के आत्मबल कोर्स के पश्चात स्नेहसम्मेलन समारोह का आयोजन किया जाता है। स्टेज पर जाने से कतरानेवाली महिलाएं भी इस सम्मेलन में न केवल भाग लेती हैं बल्कि पूरे आत्मविश्वास से इस कार्यक्रम को सफल बनाती हैं।

इस स्नेहसम्मेलन में महिलाएं किसी विषय एक पर नाटक पेश करके इसके माध्यम से बोधप्रद संदेश देती हैं, तथा नृत्य, गायन, आदि कलाएं भी पेश करती हैं। एक सुंदर नृत्य से यह स्नेहसम्मेलन संपन्न होता है।

आत्मबल महोत्सव-

आत्मबल की १३ बैचेस पूर्ण होने के बाद ‘आत्मबल महोत्सव’ का आयोजन किया गया था। १३ बैचेस यानी आरंभिक बैच की महिलाओं से लेकर सभी महिलाएं इस महोत्सव में शामिल होनी थीं।

५ और ६ नवम्बर २०११, अर्थात दो दिन यह ‘आत्मबल महोत्सव’ चला। पूना-मुंबई की लगभग १३०० महिलाओं ने चुटकुले, नृत्य, नाटिकाएं और बोधप्रद या सामाजिक विषयों पर आधारित नाटक, आदि कार्यक्रम पेश किए। महिलाओं ने खुद आत्मबल के कारण जो सकारात्मक बदलाव अनुभव किए उन अनुभवों का कथन किया। इसकी डॉक्युमेंटरी फिल्म इस महोत्सव में दिखाई गई। छोटासा ही सही पर आत्मबल कोर्स की हुई हर महिला का इस महोत्सव में योगदान था। जिन महिलाओं के पास रंगमंच पर परफॉर्म करने के लिए जरासा भी समय नहीं था, उनके लिए ‘कार्निव्हल’ (आनंदोत्सव) आयोजित किया गया था।

इस कार्निवल में १३ बैचेस में से हर वर्ष के एक बैच का ग्रूप था और प्रत्येक ग्रुप को सद्‌गुरु श्रीअनिरूद्धजी द्वारा बताए गए तेरह सूत्रों में से हर ग्रूप को एक-एक सूत्र दिया गया था। दिया गया सूत्र हरे गूप ने पेश किया। सभी महिलाओं का एकात्मिक भाव, उनका सद्‌गुरु के प्रति प्रेम, आदर, भक्ति, आदि सभी प्रकार के भावनाविष्कार प्रस्तुत की गई वंदना से उजागर हुआ। इस भव्य कार्यक्रम को यशस्वी बनाने के लिए आत्मबल की हर महिला ने जी-जान से मेहनत की। इसके अलावा उन्हें अपने परिवार से मिला हुआ सहयोग भी बडा महत्त्व रखता है, तथा किसी भी तरह का विवाद, झगड़ा किए बगैर एक ही मंच पर इतनी बड़ी संख्या में महिलाओं द्वारा मिलजुलकर इस कार्यक्रम को उत्तम तरीके से पेश करना निश्चित ही प्रशंसनीय है, और यह सबकुछ ‘आत्मबल महोत्सव’ के कारण ही संभव हो पाया।

इस आत्मबल उत्सव की एक डिव्हिडी भी बनाई गई। इस महोत्सव का सोशल मीडिया पर एक खास वेब पेज भी बनाया गया था। इस पेज को बहुत अच्छी प्रतिक्रियाएं मिली थीं। स्वीडन से पत्र द्वारा इस आत्मबल महोत्सव सराहा गया था।

आत्मबल के कारण होनेवाले बदलाव-

समय एवं आस-पास की परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए हर वर्ष क्लास का स्वरूप बदलता रहता है। गृहणियों के लिए, विशेष तौर पर आत्मबल में लगातार दो बैचेस लिए गए थे। गृहणियों की ओर से अच्छी प्रतिक्रिया मिली। इनमें से काफी महिलाएं ‘हाऊसवाईफ’ थीं, पर आत्मबल ने उन्हें ‘होममेकर’ की एक नई पहचान दी। कुछ महिलाओं को टैक्सी तथा लोकल ट्रेन से यात्रा की जानकारी भी नहीं थी, पर आत्मबल के कारण उनका आत्मविश्वास बढा। वे अकेले ही यात्रा करने लगीं। इतना ही नहीं बल्कि, कुछ महिलाओं के घरों में आये दिन होनेवाला क्लेष भी आत्मबल क्लास के कारण ही थम गए और उनका गृहस्थ जीवन भी सुखमय हो गया।

आत्मबल वर्ग के कारण प्रत्येक महिला को अपनी एक नई पहचान मिली है। उनमें छिपा हुआ टैलेंट उभरकर आया। उन्हें अन्याय के खिलाफ लड़ने की ताकत मिली है। आज वे हर क्षेत्र में आत्मविश्वास से आगे बढ़ रही हैं; भक्ति का दामन थामे संकटों पर मात कर रही हैं, क्योंकि वे सद्‌गुरु अनिरूद्ध बापूजी की ‘वीराएं‘ हैं।