अनिरूध्द – जिसे कोई भी अवरोध नही कर सकता

अनिरूध्द - जिसे कोई भी अवरोध नही कर सकता

अनिरूध्द वे हैं जिसे कोई भी , कभी भी, कहीं भी रोक नहीं सकता।

अनिरूध्द वे हैं जिसे कोई भी चीज विरोध नहीं कर सकती या उनका मार्ग कोई भी रोक नहीं सकती।

 अनिरूध्द वे हैं जिसका सत्य यही संकल्प हैं  और वे पूर्ण रूप से स्वतंत्र हैं।

अनिरूध्द वे हैं जो अविचल और अभेद्य हैं।इसीलिए इनका पाथ भी अनिरूध्द ही हैं।

अनिरूध्द मार्ग पर कोई बाधा नही आती है और ना ही कोई उसे रोक सकता है क्यों कि वह मार्ग पूरी तरह से बाधाओं से, विपदाओं से मुक्त है। इसीलिए वह निश्चित एवं शाश्वत है।

अनिरूध्द मार्ग कोई रोक नहीं सकता क्योंकि वह अस्वच्छ्ता से, गंदगी से मुक्त है। वह निर्विवाद और शाश्वत सत्य है। वह हर वक्त अनिरूध्द ही रहता है ।

जो अनिरूध्द हैं, उनके लिए कोई भी कार्य और निर्णय पवित्रता के मूल से ही उत्पन्न होता है, पवित्रता ही एकमात्र उनका निर्णयात्मक आदर्श है। हर समय वे इसी आदर्श से बंधे रहते हैं और बड़ी ही कठोरता से उसका आचरण भी करते हैं । यही एकमेव अंतिम सत्य है ।

इसीलिए अनिरूद्ध का कोई भी कार्य और कोई भी निर्णय सत्य ही है और यही अनिरुद्ध एकमेव अंतिम सत्य है ।

जो माता चण्डिका पर दृढ़ विश्वास रखता हो और जिसे अपनी गलती पर सही मायने में पश्चाताप है, उसके लिए अनिरूध्द के पास अमर्यादित क्षमा है क्योंकि अनिरूध्द पाप से नफरत करतें हैं पापियोंसे नहीं। क्योंकि उनका प्रेम अमर्याद है और ‘मैं कदापि तुम्हारा त्याग नहीं करूँगा।’ ये उनका बचन हैं।

अनिरूध्द का कोई भी कार्य और निर्णय सत्य, प्रेम और आनंद के आधार से ही उत्पन्न होते हैं। उनका प्रेम किसी विरोध के बिना ही हृदय से जुड़ जाता है और यह प्रेम का एहसास ही श्रध्दा का रूप धारण कर लेता है और वही श्रध्दा बाद में जिंदगी के हर मोड़ पर अनिरूध्द के प्रेम को महसूस करती है और ‘हमें अपनी अपनी श्रध्दानुसार न्याय मिलता है, अपने कार्य से नहीं ’ इस मूल्य को हम आत्मसात कर लेतें हैं। अनिरूध्द का प्रेम सकारात्मकता, विकास एवं प्रगति का मार्ग हमारे लिए खोल देता है ।

अनिरूध्द का जीवनकार्य पूरे विश्व को आनंद से भर देना हैं और जो भी आनंद निर्माण करता हो ऐसे सभी से। और हर एक जीवमात्र को आधार देना यही उनका मुख्य उद्दीष्ट्य हैं। अनिरूध्द का जीवनकार्य अनिरूध्द मार्ग पर ही है – एक ऐसा मार्ग जो कभी भी रोका नहीं जा सकता। वह मार्ग हर किसी का आनंद में ही समापन करता है, क्यों कि वह अनिरूध्द की इच्छा है – जो जिसे कोई रोक नहीं सकत।

वे अनिरूध्द हैं, जिसे कोई रोक नहीं सकता।