वृक्षारोपण / वनीकरण
शहरों में बढ़ रहे सीमेंट के जंगल, कॉक्रीटीकरण, वृक्षोंसहित जंगलों तथा वनों की द्रुतगति से हो रही कटाई, दावानल आदि कारणों से घटते हुए प्रमाण के कारण वैश्विक तापमान के बढ़ने में वृद्धि हो रही है, आज हमारे सामने यह एक बहुत बड़ा संकट खड़ा हुआ है। दिन-ब-दिन पर्यावरण की हो रही अवनति, बढ़ते क्रम से उसके गुणवत्तामें हो रही गिरावट और वातावरण में बढ़ता असंतुलन, इन वजहों से मानव का अस्तित्व ही संकट में पड़ गया है, ऐसी चेतावनी लगातार मिल रही है। पर्यावरण संतुलन को बनाए रखने के लिए उपलब्ध भूमि क्षेत्र से कम से कम ३३% क्षेत्र पर घने पेड़ों का होना आवश्यक होता है। हालांकि, भारत में ऐसी स्थिति नहीं है, फिर भी अन्य कई कारणों से इस विषय की ओर अनदेखा किया जा रहा है, तो दूसरी ओर अबतक इस संकट को कम करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाये जा रहें हैं। इसे ध्यान में रखते हुए तथा अपने सामाजिक ज़िम्मेदारी को ध्यान में रखते हुए, प्रकृति का तथा पर्यावरण का संतुलन पूर्ववत करने के उद्देश्य से, श्री अनिरुध्द उपासना फाउंडेशन और संलग्न संस्था अनिरुध्दाज् अकॅडमी ऑफ डिझास्टर मॅनेजमेंट के सहयोग से वृक्षारोपण करने के लिए ठोस कदम उठाए जा रहे हैं।
वृक्षारोपण / वनीकरण अर्थात विभिन्न प्रकार के पेड़- पौधे लगाकर उनका लालन-पालन करना!
३० नवंबर २०१७ के दिन, सद्गुरु श्री अनिरुद्धजीने बांद्रा के न्यू इंग्लिश हाईस्कूल में अपने श्रद्धावान मित्रों को संबोधित करते हुए चार योजनाएं भेंटस्वरूप दी थी। उस समय, सद्गुरु श्री अनिरुद्धजीने ‘श्रीवनदुर्गा योजना’ के बारे में भी जानकारी दी थी।
घरोंमें हम सभी फ़लाहार करते हैं। चीकू तथा सीताफल/शरीफा के बीज बड़े होते हैं और वे जल्दी खराब भी नहीं होते। ऐसे बीज फेंकने के बजाय, उन्हें खादमिश्रित मिट्टी में रोपण कर, उसके छोटे-छोटे गोले बनाकर रखें। जब कभी हम शहर से बाहर घूमने जाएँ, तब इस तरह के ‘सिडबाल्स’ (बीजवाले मिट्टी के गोले) हम, सड़क के किनारे, दोनों तरफ जहाँ जगह खाली हो और थोड़ी मिट्टी हो, वहाँ बोएं और उस पर थोड़ा पानी डालें। सद्गुरु श्री अनिरुद्धजीने सूचित किया था कि, यदि हर कोई कम से कम दस ऐसे ‘सिडबाल्स’ लगाता है, और उनमें से कम से कम दो बीजोंसे भी पेड़ उगतें हैं, तो भी निश्चित रूप से वृक्षारोपण का उद्देश्य सफल हो जाता है।
‘श्रीवनदुर्गा योजना’ की घोषणा के बाद, ‘श्रीवनदुर्गा योजना’ के अंतर्गत, संस्था के विभिन्न उपक्रमों में ऐसे सिडबाल्स का वितरण किया गया है। लेकिन, यह पहलीबार नहीं है कि, ‘श्रीवनदुर्गा योजना’ के तहत, सद्गुरु श्री अनिरुद्धजीने इस तरह ‘वृक्षारोपण सेवा’ या ‘वनीकरण सेवा’ हाथों में ली हो, बल्कि इस ‘श्रीवनदुर्गा योजना’ के बीज ‘वृक्षारोपण कार्यक्रम’ के अंतर्गत, सन २००४ से ही, श्री अनिरुद्धजी द्वारा पिरोये गये हैं।
डॉ. अनिरुध्द जोशीजी की वृक्षारोपण की संकल्पना
सद्गुरु श्री अनिरुद्धजीने, ०६ मई २०१० के दिन, श्रीहरिगुरूग्राम में ‘रामराज्य’ इस विषय पर किये हुए प्रवचन में कहा था कि, ‘कई विशिष्ट पेड़ों और पौधों का बड़ी मात्रा में रोपण करने से डिफॉरेस्टेशन (निर्वनीकरण) (वनों की कटाई), सोइल ईरोजन (मिट्टी का कटाव), बंजरता का अतिक्रमण, इस तरह की समस्याओं का निश्चित तथा उत्तम तरीके से समाधान निकाला जा सकता है। वृक्षारोपण किसप्रकार से किया जाए, किस प्रकार के जगहों पर वन का रोपण किया जाए, इसकी गहरी जानकारी श्री अनिरुद्धजीने दी थी।
इसके पश्चात “श्री अनिरुद्ध उपासना फाउंडेशन” की ओर से इच्छुक श्रद्धावान कार्यकर्ताओं को, ‘अनिरुरुद्धाज इंस्टीट्यूट आफ ग्रामीण विकास’, गोविद्यापीठम्, कोठिंबे, कर्जत यहाँ पर प्रशिक्षण दिया गया, जो आज भी दिया जा रहा है।
सद्गुरु श्री अनिरुद्ध उपासना फाउंडेशन के विभिन्न उपासना केंद्रों द्वारा सामूहिक रूप से वृक्षारोपण का आयोजन किया जाता है। वृक्षारोपण हेतु स्थानिक प्रशासनद्वारा कभी राजमार्ग के दोनों तरफ, पहाड़ोंपर या खुली जगहोंपर भूमि उपलब्ध करवाना, कभी वृक्षारोपण के लिए उच्च प्रति के बीज उपलब्ध कराना, इस तरह की सहायता मिलती है, तो कभी श्रध्दावान कार्यकर्ता स्वयं कोशिश कर वृक्षारोपण के लिए उपलब्ध जगहों की जांच कर, स्वयं बीज खरीदकर भी सामूहिक रूप से वृक्षारोपण करते हैं।
सद्गुरु श्री अनिरुद्धजीने अपने श्रद्धावान मित्रों को व्यक्तिगत स्तर पर भी वनीकरण कार्य के बारे में मार्गदर्शन किया है। श्रद्धावान व्यक्तिगत स्तर पर, अपने घरों में तुलसी के साथ ही कम से कम ५ तरह के पौधों [करीपत्ता, मोगरा, गुलाब, अदरक और ‘झिपरी’] का पौधा खिड़की या गैलरी में लगाकर अपनी ओर से योगदान कर सकते हैं। उसीतरह अपने जन्मदिन पर या किसी मंगलमय अवसर पर, एकदूसरे को तुलसी या अन्य फूलों के छोटे पौधे भेंट स्वरुप देकर समाज में इसका प्रभोधन भी किया जा रहा हैं।
सद्गुरु श्री अनिरुद्धजीने, अपने निवासस्थान के परिसर में या अपने बिल्डिंग में कम से कम नीम, बरगद, पिपल, आम आदि वृक्ष या फिर छोटे पेड़ को लगाने के लिए प्रेरित किया है। श्रद्धावानों को वृक्षारोपण तथा वनीकरण के बारे में सम्बोधित करने से पहले ही, सद्गुरु श्री अनिरुद्धजीने स्वयं के इमारत की छत पर विभिन्न फलों एवं फूलों का बगीचा बनाया है। इस योजना को स्वयं से शुरू करने के बाद ही, सद्गुरु श्री अनिरुद्धजीने अपने मित्रों को ‘वृक्षारोपण’ योजना के लिए प्रेरित किया है।
अब तक, सद्गुरु श्री अनिरुद्धजी के प्रेरणा से ६० हजार से अधिक पौधों का वृक्षारोपण किया गया है।
वृक्षारोपण का महत्व
वृक्षारोपण के कारण प्रकृति की सुंदरता तो बढ़ती ही है, उसी के साथ वैश्विक तापमान को बढ़ने से रोकने में भी मदद होती है, जिससे पर्यावरण का संतुलन बनाये रखने में सहायता होती है। घने जंगलों के कारण अच्छी बारिश होती है। बाढ़ से बचाव होने में भी पेड़ मदद करतें हैं। पेड़ों की वजह से बारिश का पानी जमीन में अधिक गहराई तक सोंख लिया जाता है, जिससे भूजल के भंडार में वृद्धि होकर पानी का स्तर बढ़ने लगता है, मिट्टी का कटाव कम हो जाता है (मिट्टी को धूल जाने में अटकाव आता है), और मिट्टी के प्रतिधारण को बनाए रखा जाता है।
पेड़ वातावरण से दुर्गंधी आनेवाली और हानिकारक विषालु हवा (नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, अमोनिया, आदि) सोंख लेते हैं और ऑक्सीजन से भरी शुद्ध हवा की आपूर्ति करते हैं। वातावरण से एक दिन के भीतर, एक आदमी, अपने शरीर में लगभग ३ सिलिंडर ऑक्सीजन, साँसों के जरिये शरीर के अंदर लेता है। सालाना एक पेड़, वातावरण में लगभग २६० पाउंड ऑक्सीजन जारी करता है। इसी तरह, एक एकड़ जमीन पर पूरी तरह बढ़ा हुआ पेड़, सालाना १८ लोगों को पर्याप्त ऑक्सीजन की आपूर्ति कर सकता है!
इससे, हमें वृक्षारोपण का महत्व अनन्य रूप से ज्ञात होता है, और इसी उद्देश्य से, ‘सद्गुरु श्री अनिरुद्ध उपासना फाउंडेशन’ और ‘अनिरुध्दाज् अकॅडमी ऑफ डिझास्टर मॅनेजमेंट’ के प्रबंध से हमने बड़ी संख्या में वृक्ष लगाने का संकल्प किया है।