श्रीक्षेत्र अक्कलकोट रसयात्रा

श्रीक्षेत्र अक्कलकोट रसयात्रा प्रारंभ

शिरडी रसयात्रा के बाद सन १९९७ में श्रद्धावानों ने सद्‍गुरु श्री अनिरुद्धजी के साथ श्रीक्षेत्र अक्कलकोट रसयात्रा की। ऐसे अवसर पर भक्तों के आनंद की सीमा न रही। सद्गुरु श्रीअनिरुद्धजी के साथ पूरे ४ दिन इस रसयात्रा का आनंद लूटना मानो  श्रद्धावानों के लिए आनंद का पर्व ही था। श्री साई समर्थ विज्ञान प्रबोधिनी के सौजन्य से इस रसयात्रा का आयोजन किया गया था। दिनांक ११ सितम्बर १९९७ के दिन इस यात्रा का आरंभ हुआ। श्रीस्वामी समर्थ के श्रीक्षेत्र अक्कलकोट के दर्शन के लिए और वहां के पावन स्थानों की जानकारी पाने के लिए परमपूज्य सद्‍गुरु श्रीअनिरुद्धजी के साथ हरएक भक्त उत्सुक था।

 

श्रीक्षेत्र अक्कलकोट रसयात्रा दर्शन एवं उपासना – (१२ सितम्बर १९९७)

श्रीक्षेत्र अक्कलकोट पहुंचने पर दोपहर के ४ बजे श्रीस्वामी समर्थजी के समाधि मंदिर से २ मिनिट की दूरी पर जाधव सभागृह में ’श्री अमृतमंथन’ उपासना आरम्भ की गई। ‘ॐ कृपासिंधु श्री साईनाथाय नम:।’ इस सिद्धमंत्र का जप १२ बार किया गया। तत्पश्चात सभी भक्तों को केले के पत्तों पर चिकनी मिट्टी के गोले दिए गए और उससे श्रीस्वामीजी की प्रतिकात्मक पादुकाएं बनाने के लिए कहा गया। पादुकाओं पर अर्पण करने के लिए हरएक  श्रद्धावान को अर्चनद्रव्य दिया गया था। पदुकाएं बनाते समय और उसके बाद उन पर अर्चनद्रव्य अर्पण करके अभिषेक करते हुए निम्नलिखित ‘श्रीस्वामीसमर्थ गायत्री मंत्र का’ १०८ बार जप किया गया।

 

श्रीस्वामीसमर्थ गायत्री मंत्र

भूर्भुव: स्व: स्वामीसमर्थाय विद्महे। पूर्णपुरुषाय धीमहि। न्नो सद्‍गुरु:प्रचोदयात॥’           

 इसके बाद वे पादुकाएं मक्खन की पादुकाओं पर अर्पण की गईं। मक्खन की पादुकाएं साईसच्चरितकार हेमाडपंतजी (श्री. गोविंद रधुनाथ दाभोलकर) के पोते अप्पासाहेब दाभोलकर तथा अप्पासाहब की पत्नी श्रीमति मीनाभाभी दाभोलकर इस जेष्ठ श्रेष्ठ श्रद्धावान दम्पति द्वारा सद्‍गुरु श्री अनिरुद्धजी के मार्गदर्शनानुसार बनाई गई थीं।

इसके साथ- साथ सद्‍गुरु श्री अनिरुद्धजी के मार्गदर्शनानुसार श्री अप्पासाहब दाभोलकरजी ने मिट्टी का शिवलिंग बनाया था। उस शिवलिंग पर श्रीशिवगायत्री मंत्र का जप १०८ बार करते हुए १०८ बेलपत्र अर्पण किए गए। सभी श्रद्धावान श्रीशिवगायत्री मंत्रपाठ में शामिल हुए थे।

 श्रीशिवगायत्री मंत्र

भूर्भुव: स्व: तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात्

आरती

श्रीशिवगायत्री मंत्रपाठ के बाद आरती की गई। तत्पश्चात संपूर्ण समर्पण भाव से श्री स्वामी समर्थजी की भक्ति-सेवा करनेवाले स्वामी समर्थजी के चोलप्पा एवं बालप्पा इन दोनों श्रेष्ठ भक्तों का गुणगान करनेवाले एक गजर   में सद्‍गुरु श्री अनिरुद्धजी के साथ सभी श्रद्धावान आनंदपूर्वक शामिल हुए।

 वह गजर था

‘चोळप्पाचे प्रेम हवे मज, बाळप्पाची भक्ती हवी । विभक्तीचा अंश नको मज, स्वामी तुमची कृपा हवी॥’

(चोलप्पा का प्रेम चाहूं और बालप्पा की भक्ति। विभक्ति का अंश न देना, स्वामी चाहूं आपकी कृपा॥)

 आरती के पश्चात भोजन करके रात के ११ बजे सभी को सद्‍गुरु श्री अनिरुद्धजी के साथ सत्संग में शामिल होने का सुनहरा अवसर प्राप्त हुआ।

 

श्रीक्षेत्र अक्कलकोट रसयात्रा दूसरा दिन – (१३ सितम्बर १९९७)

नाश्ते के बाद का कार्यक्रम था अक्कलकोट स्थान दर्शन! उन स्थानों पर जाने का क्रम भी परमपूज्य सद्‍गुरुजी द्वारा तय किएनुसार ही था। इसके बाद दोपहर के १२ बजे भोजनपूर्व वटवृक्ष मंदिर में सद्‍गुरु श्री अनिरुद्धजी के मार्गदर्शनानुसार ५ पुरुष एवं ५ महिलाओं ने महाभोग अर्पण किया। प्रथम सभी स्वामीजी के मूल समाधि मंदिर में गए। यह समाधि चोलप्पाजी के घर के पास है। वहीं स्वामीजी जिस गाय का दूधपान किया करते थे, उस गाय की भी समाधि है। इसके बाद सभी जोशीबुवा मठ में गए। यहां पर चौकी पर अंकित  स्वामीजी की चरण्मुद्राओं का सभी ने दर्शन किया।

तत्पश्चात जिस वटवृक्षतले स्वामीजी का वास था, उस मंदिर के वटवृक्ष का दर्शन करके सभी श्रद्धावान बालप्पा मठ में गए। स्वामीजी ने अंतसमय अपनी पादुकाएं, दंड, रुदाक्षमाला ये पवित्र चीजें बालप्पाजी के स्वाधीन की थीं, वे बालप्पा मठ में रखी हुई हैं, सभी ने उनके भी दर्शन किए।

रात को १०.३० बजे बापूजी के सान्निध्य में सत्संग की शुरुआत हुई।

 श्रीक्षेत्र अक्कलकोट रसयात्रा तीसरा दिन – (१८ सितम्बर १९९७)

अक्कलकोटनिवासी श्रीस्वामी समर्थजी को श्रीगुरु दत्तात्रेयजी का अवतार माना जाता है। इसलिए सद्‍गुरु श्री अनिरुद्धजी के मार्गदर्शनानुसार नाश्ते के बाद ठीक ९.३० बजे श्रीदत्त उपासना की गई। पांच भक्तों से सद्‍गुरु श्री अनिरुद्धजी ने गुरुचरित्र का पूजन कराया। तत्पश्चात श्री दत्त मंत्र का १०८ बार जप किया गया। वह मंत्र था –

अत्रिनंदाय दत्तात्रेयाय विश्वाध्यक्षाय नम:

इसके बाद ‘दिगंबरा, दिगंबरा श्रीपादवल्लभ दिगंबरा’ इस नामगजर में सभी श्रद्धावान भक्त प्रेमभाव से नाचते -गाते शामिल हुए।

 

बिदाई समारोह

नामगजर के बाद १२.३० बजे श्रद्धावानों को पुन: बापूजी के साथ कुछ देर तक सत्संग में शामिल होने का लाभ मिला। तत्पश्चात परमपूज्य बापूजी ने ५ भक्तों के हाथों में ५ नारियल वटवृक्षमंदिर में रखने के लिए दिए। इसके बाद सभी को अमरूद का प्रसाद बांटा गया और रसयात्रा की भक्तिमय यादें अपने साथ लेकर सभी अपने- अपने घरों की ओर रवाना हो गए।