श्रीमंगलचण्डिकाप्रपत्ती
“श्रीमंगलचण्डिका प्रपत्ती’ श्रद्धावान महिलाओं के लिए एक महत्त्वपूर्ण पर्व है। आदिमाता चण्डिका की प्रपत्ती करनेवाली महिला अपने साथ साथ घर की, समाज की, देश की रक्षा करने के लिए समर्थ बनती है और इस प्रपत्ती द्वारा प्राप्त आत्मिक बल से समर्थ बनी महिला अपने साथ साथ घर-परिवार, समाज, देश और धर्म का विकास करने में समर्थ होती है। सद्गुरु श्री अनिरुद्धजी ने एक प्रवचन में महिलाओं की प्रपत्ती का महत्त्व समझाया था, उस बोध का यह सारांश है।“श्रीमंगलचण्डिका प्रपत्ती’ श्रद्धावान महिलाओं के लिए एक महत्त्वपूर्ण पर्व है। आदिमाता चण्डिका की प्रपत्ती करनेवाली महिला अपने साथ साथ घर की, समाज की, देश की रक्षा करने के लिए समर्थ बनती है और इस प्रपत्ती द्वारा प्राप्त आत्मिक बल से समर्थ बनी महिला अपने साथ साथ घर-परिवार, समाज, देश और धर्म का विकास करने में समर्थ होती है। सद्गुरु श्री अनिरुद्धजी ने एक प्रवचन में महिलाओं की प्रपत्ती का महत्त्व समझाया था, उस बोध का यह सारांश है।
‘रामराज्य’ पर किए गए महत्त्वपूर्ण प्रवचन में सद्गुरु श्री अनिरुद्धजी ने महिलाओं की ‘श्रीमंगलचण्डिकाप्रपत्ती’ की घोषणा की। ‘श्रीमंगलचण्डिकाप्रपत्ती’ महिलाओं को पराक्रमी बनाती है। प्रपत्ती शब्द का अर्थ है आपत्तिनिवारण करनेवाली शरणागति। यह मंगलचण्डिका प्रपत्ती परमात्मा की मां आदिमाता चण्डिका के चरणों में अर्पण की जाती है। महिलाएं मकरसंक्रांति के दिन अर्थात १४ या १५ जनवरी को यह प्रपत्ती मनाती हैं, क्योंकि संक्रांति के दिन ही आदिमाता महिषासुरमर्दिनी ने महिषासुर को मारने के लिए पृथ्वी पर कर्दम ऋषि और देवहूति के कतराज आश्रम में पहला कदम रखा था।
इसीलिए संक्रांति के दिन सूर्यास्त के बाद ‘श्रीमंगलचण्डिकाप्रपत्ती’ की जाती है। सूर्यास्त के बाद क्यों? क्योंकि, महिषासुरमर्दिनी ने सूर्यास्त के बाद कतराज आश्रम में पहला कदम रखा था। सूरज के रहते यदि माता महिषासुरमर्दिनी पधारी होतीं तो उनका तेज मनुष्य सह नहीं पाते; इसलिए उन्होंने सूर्यास्त के बाद पहला कदम रखा।
संक्रांति के दिन सूर्यास्त के बाद खुली जगह में सभी महिलाएं को एकसाथ मिलकर यह प्रपत्ती करनी होती है। यह प्रपत्ती करने से प्रत्येक महिला को उसके परिवार की रक्षक सैनिक अर्थात ‘बॉडीगार्ड’ बनने के लिए आत्मिक बल प्राप्त होता है। चाहे वह महिला माँ, पत्नी, बहन किसी भी भूमिका में हो, प्रपत्ती करने के कारण वह रक्षक बनती है। संभवत: यह प्रपत्ती खुली जगह में अर्थात समुद्र या नदीकिनारे, मैदान में, गैलरी में, चॉल के कटघरे के पास करनी चाहिए। इस प्रपत्ती के लिए जितनी अधिक महिलाएं इकठ्ठा होंगी उतना ही अच्छा होता है। सोलह वर्ष की आयु से अधिक की कोई भी महिला यह प्रपत्ती कर सकती है। एक वर्ष प्रपत्ती करने के बाद हर वर्ष करनी अनिवार्य नहीं है। महिलाओं का मासिक धर्म भी इस प्रपत्ती के आड़े नहीं आता। मासिक धर्म के दौरान महिलाएं अपनी जुबान या नाभि पर उदी लगाकर प्रपत्ती में शामिल हो सकती हैं, ऐसा सद्गुरु श्रीअनिरुद्धजी ने कहा है।
प्रपत्ती की विधि :
एक चौरंग या पीढ़े पर बड़ी परात रखना। परात में गेहूँ फैलाकर उस पर कलसी या कलश रखना। उसमें चावल भरना, कलशी के ऊपर ताम्हण (तांबे की छोटी थाली) रखना और ताम्हण में देवी के दो पग बनाना। दाहिना पग कुमकुम का और बायाँ पग हलदी का होना चाहिए। उस परात में कलश से टेक लगा कर स्वयंभगवान त्रिविक्रम की तस्वीर रखें। यह हो गई पूजा की रचना।
महिलाएं पूजन के लिए थाली और पूजन द्रव्य लाएं। पूजनद्रव्य में सहजन, केला, ककड़ी या लौकी, श्रीफल अर्थात नारियल, गाजर, मूली या कुंदरू, उड़द की दाल, तिल का तेल, दही, हलदी पाउड़र (साबुत हलदी नहीं), अद्रक, गुड़, इमली, गन्ने के टुकड़े, सुगंधित फूल और अभिचारनाशक पुडिया होती है। पान, नमक, सरसों और कपूर रखकर उस पान को धागे से बाँधकर उसकी पुड़िया बनाएं, यही अभिचारनाशक पुडिया है। इन पूजन द्रव्यों से भरी थाली हाथों में लिए महिलाएं प्रपत्ती करने के स्थल पर खड़ी रहती हैं। उनमें से उम्र में बड़ी महिला ‘माते गायत्री, सिंहारुढ भगवती – महिषासुरमर्दिनी, क्षमस्व चण्डिके जय दुर्गे अखिल विश्व की जननी माँ उदे उदे उदे उदे उदे’, यह माता महिषासुरमर्दिनी की आरती उतारेगी और उसके साथ साथ अन्य महिलाएं यह आरती दोहराएंगी।
तदुपरांत थाली हाथ में लिए प्रत्येक महिला चण्डिका के पद्चिन्ह स्थान अर्थात कतराज आश्रम के इर्दगिर्द नौं परिक्रमाएं करेंगी। परिक्रमा करते हुए बडी आवाज में श्रीगुरुक्षेत्रम् मंत्र पढना है। परिक्रमाएं पूर्ण होने पर अभिचारनाशक पुडिया से त्रिविक्रमजी की नजर उतारनी है। नजर उतारते समय त्रिविक्रम से प्रार्थना करनी है कि, “बाबा रे! मेरे घर पर जो कोई कुदृष्टि, कुबुद्धि हो तुम अपनी माँ की सहायता से उन सभी का नाश करना।’’ और फिर वह पुडिया होमकुंड या किसी गढ्ढ़े में समिधाएं और कपूर की सहायता से प्रज्वलित की गई अग्नि में अर्पण करनी है। यह निर्माण किया गया अग्नि माता महिषासुरमर्दिनी का तेजोवलयम् है। इस कृति द्वारा अपने घर की सारी जिम्मेदारी त्रिविक्रमजी पर सौंपी जाती है। श्रीगुरुक्षेत्रम् मंत्र के कारण अग्नि का रूपांतर तेजोवलयम् में हो जाता है। घर पर जो कुदृष्टि, कुबुद्धि, कुकर्म होते हैं वे तेजोवलयम् में ड़ाले जाने के कारण घर का कल्याण होता है, ऐसा श्रद्धावानों का विश्वास है।
पूजन के बाद ‘ॐ ऐं र्हीं, क्लीं चामुण्डायै विच्चे’ यह मंत्र नौं बार जपते हुए सभी महिलाओं को माता के कदमों पर अक्षता अर्पण करनी हैं और त्रिविक्रम को सुगंधित फूल अर्पण करने हैं, और तेजोवलयम् की अग्नि को नीम के पत्तों से शांत करना है। तत्पश्चात महिलाएं उन पगों के हलदी-कुमकुम घर न ले जाएं बल्कि, वहीं पर अपने माथे या गले पर लगाएं और फिर प्रसाद के रूप में अर्पण किया गया केला वहीं ग्रहण करें तथा दही घर के पुरुषों को दें। यदि घर में पुरुष न हों तो वह किसी भी वृक्षतले अर्पण कर दें। गन्ना घर ले जाकर महिलाएं खुद थोड़ा-थोड़ा रोज खाएं। थाली में शेष पूजन द्रव्यों का सांसबर बनाकर घर के स्त्री-पुरुष व अन्य लोग भात और रोटी के साथ खाएं। स्वाद के लिए मसाला और आरोग्य के लिए कड़ीपत्ते का प्रयोग अवश्य करें। मात्र उस दिन अन्य कोई भी सब्जी न बनाएँ। पूजन के बाद महिलां ‘जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी’ इस गजर पर चक्राकार घूमकर इस प्रपत्ती का भरपूर आनंद उठा सकती हैं।
सन् २०११ से मकरसंक्रांति के दिन सभी श्रद्धावान वीराएँ बापूजी द्वारा किए गए मार्गदर्शनानुसार सामूहिक श्रीमंगलचण्डिकाप्रपत्ती बड़े ही उत्साह एवं खुशी से मनाती हैं। श्रद्धावान वीराओं के साथ अन्य महिलाएँ भी इस प्रपत्ती में शामिल होती हैं। यह प्रपत्ती मैं देश के लिए, परिवार के लिए कर रही हूँ, इस बात का संतोष मकरसंक्रांति के दिन प्रपत्ती करनेवाली प्रत्येक श्रद्धावान महिला के चेहरे पर दिखाई देता है। हर वर्ष इस सामूहिक प्रपत्ती के समारोह में शामिल होनेवाली महिलाओं की संख्या बढती ही जा रही है।