श्रीअनिरुद्ध उपासना फाऊंडेशन यह एक सेवाभावी (चॅरिटेबल – Not for Profit) संस्था होकर, कंपनी अधिनियम १९५६ के कलम २५ के तहत, अप्रैल २००५ में उसकी स्थापना हुई। मुख्य रूप से देश के विभिन्न भागों में और विदेशों में सद्गुरु श्री अनिरुद्ध उपासना केंद्रों की स्थापना करना और उनके माध्यम से अनिरुद्धजी के आध्यात्मिक मूल्यों का प्रचार एवं प्रसार करना और उस संदर्भ में सेवाभावी कार्य करना, यह संस्था का उद्देश है।
इस फाऊंडेशन की स्थापना की शुरुवात से ही सदगुरु श्री अनिरुद्ध के आध्यात्मिक सींख का प्रचार और प्रसार करना और देश के विविध भागों में और परदेस में उपासना केंद्र की स्थापना करना यही संस्था का मुख्य उद्दिष्ट है । इस के अलावा फाऊंडेशन की संलग्न संस्थाओं द्वारा ( उदा. श्रीअनिरुद्ध आदेश पथक, अनिरुद्धाज ऍकॅडमी ऑफ डिझास्टर मॅनेजमेंट आदी ) सदगुरु श्री अनिरूध्द के आशिर्वाद और मार्गदर्शन से विविध सामाजिक एवं सांस्कृतिक उपक्रम कार्यरत किए जातें हैं ।
फाऊंडेशन के निमन्लिखित कई दूसरे उद्दिष्ट भी हैं –
१) सब धर्मों का तुमनात्मक अभ्यास करना और समाज में सर्वधर्मसमभाव और बंधुता का एहसास निर्माण करना और उसे प्रोत्साहन देना ।
२) विश्व में कोई भी और किसी भी नैसर्गिक और मानवनिर्मित आपत्ति के समय में आपत्ति व्यवस्थापन के उपाय योजनाओं के सहाय्य कार्य में मदद करना और मानवी स्तर पर सेवा देने के लिए सभी प्रकार की सहाय्यता करना ।
३) शांति के समय में देश के कोने कोने में बडी संख्या से नौजवान स्वंयसेवकों को तैय्यार करना और आगे चलकर कोई भी नैसर्गिक और मानवनिर्मित आपत्ति आने पर या विदेशी आक्रमण बढने पर इन स्वंयसेवकों की सेवा अपनी मातृभूमि के संरक्षण के लिए भारत सरकार के पास बिना शर्त समर्पित करना ।
४) सामान्य (आम ) जनता के हित (फायदे) के लिए – प्रमुखता से गरीब और जरूरतमंदों के लिए – धर्म , जाति , पंथ ऐसा भेद किए बिना – धर्मादाय अस्पताल,वृध्दाश्रम, बाल कल्याण केंद्रो की स्थापना करना ।
५) गोविंदविद्या , गोपालविद्या और बलविद्या जैसी प्राचीन भारतीय विद्या और विज्ञान संशोधन और विश्लेषण का प्रचार और प्रसार करना ।
६) प्रार्थनास्थल, ध्यानकेंद्र, अनाथाश्रम और धार्मिकस्थल जैसे आधार देनेवाले केंद्र स्थापित करना ।
७) प्राचीन भारतीय ग्रंथों का और संस्कृत भाषा का अभ्यास करने प्रोत्साहन देना ।
८) विविध भारतीय और विदेशी भाषाओं की एकात्मकता और अखंडता को बरकरार रखने के लिए प्रोत्साहन देना ।
९) भारत में (देश में ) और विदेश में निरक्षरता निर्मूलन के लिए कार्य करना और शिक्षा (पढाई) का प्रचार करना, निरक्षरता निर्मूलन को बढावा देने के लिए प्रकल्प करना और अन्य सुविधाएं प्रदान करना ।
१०) बिना जात , पंथ और धर्म का भेद किए हुए ,शरीर , मन और बुध्दि इन तीन स्तरों पर स्वजागृती प्राप्त करने के लिए बहुत बडी संख्या में लोगों का मार्गदर्शन करना ।