अनिरुध्दाज् इन्स्टिट्यूट ऑफ ग्रामविकास (AIGV)
किसानों के उत्कर्ष के बिना ग्रामविकास संभव नहीं हो सकता, इसी लिए गाँव के उपेक्षित किसानों के विकास हेतु इन किसानों के पास जो ताकत (साधन) है उसका अहसास कराने के लिए और उन्हें स्वावलंबी बनाने के लिए डॉ.अनिरुद्ध जोशीजी ने 6 मई 2010 को ‘अनिरुद्धाज् इन्स्टिट्यूट ऑफ ग्रामविकास अर्थात ए.आय.जी.वी.’ की स्थापना की।
गाँव के उपेक्षित मेहनतकश किसानों की सहायता करना ‘ए.आय.जी.वी.’ का मुख्य उद्देश्य है। किसानों का खेतों का उत्पादन बढ़ाना तो महत्त्वपूर्ण है ही, मगर इससे भी अधिक खेती के उत्पादन के लिए उन्हें जो खर्च करना पडता है उस खर्च को घटाना और उनके घर-परिवार की जरुरतों को बिना खर्च पूरी करना अधिक महत्त्वपूर्ण है। तथा छोटी-छोटी योजनाओं के जरिए बलीराजा की प्रगति करना ए.आय.जी.व्ही. का मुख्य उद्देश्य है।
इसलिए सद्गुरु श्रीअनिरुद्ध (बापूजी) ने मुंबई के नज़दीक कर्जत तालुका स्थित कोठिंबे में संस्था के ‘श्री गोविद्यापीठम्’ नामक स्थान चुना।
इस ग्राम विकास का पहला और आसान उपाय है ‘परसबाग’। परसबाग में अपने पास उपलब्ध जगह में घर की साधनसामग्री, रसोईघर का पानी इनके उचित उपयोग से रोजमर्रा इस्तेमाल की जानेवाली सब्जियों की ऋतु अनुसार फसल उगाई जा सकती है। गाँवों में पिछले आँगन में या घर के सामने उपलब्ध छोटीसी जगह में और शहरों में भी यह परसबाग रसोईघर में अर्थात किचन गार्डन, छत पर अर्थात टेरेस गार्डन के नाम से प्रचलित है।
‘ए.आय.जी.वी.’ के अंतर्गत गोविद्यापीठम् में अनेक उपक्रम चलाए जाते हैं। कुछ उपक्रम प्रायोगिक तत्त्व पर शुरु किए गए। सन 2013 से गोविद्यापीठम् में अक्तूबर से मई तक के आठ महीनों के दौरान जैविक खेती और पशुपालन के वर्ग चलाये जाते हैं। इस निवासी पदवीदायकपत्र वर्ग में उपलब्ध साधनों द्वारा संपन्नता की ओर ले जानेवाली कम खर्चवाली, गैरविशैला शाश्वत खेती की पद्धति प्रयोगों समेत सिखाई जाती है।
इस पदवीदायकपत्र वर्ग में अब तक मुंबई, पुणे, सांगली, सातारा, कोल्हापुर, औरंगाबाद, आदि भागों से अनेक किसान भाग ले चुके हैं, और आसपास के ग्रामिण इलाकों में यह ग्रामविकास का कार्य जारी है। इसके अलावा संस्था के स्वयंसेवक ग्रामिण इलाकों में जाकर परसबाग, केंचुआ खाद जैसे प्रकल्प १/२ दिन के Crash Course में सिखाते हैं। किसानों के पास उपलब्ध जमीन, पानी, पशूधन जैसी साधनसंपत्ति का उचित व्यवस्थापन करने का तरीका किसानों को सिखाने का कार्य ‘ए.आय.जी.वी.’ अंतर्गत जारी है।
‘ए.आय.जी.वी.’ में जैविक खेती पद्धति का अवलंब किया जाता है। इसलिए रासायनिक खाद और कीटनाशकों पर किया जानेवाला खर्च बचता है। केंचुआ खाद, गोबर खाद, सोन खाद, कंपोस्ट खाद बनाने का प्रशिक्षण दिया जाता है। तथा उपयोग में लाए जानेवाला निमार्क, दशपर्णी अर्क, जीवामृत, बीजामृत बनाने का तरीका भी सीखाया जाता है। इसके अलावा यहां पर अजोला (Azolla) प्रकल्प बनाया गया है जिससे खेती के लिए खाद और पशुओं के लिए चारा बनता है।
वनीकरण में उपयुक्त पेड़पौधों की जानकारी दी जाती है। जो पौधे रेतीली जमीन में लगाने से बंजर जमीन का रूपांतर उपजाऊ जमीन में करते हैं, जमीन का सूखापन रोकते हैं और जमीन में पानी को रोककर रखते हैं उन पौधों की जानकरी और उनका रोपण कैसे करना है इसकी भी जानकारी यहाँ प्रदान की जाती है।
‘पशुपालन’ अंतर्गत गाय, भैंस और बकरी पालन के साथ-साथ ही कुक्कुट पालन, बटेर पालन तथा खरगोश पालन का प्रयोगों समेत प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है, जिसमें उनके आहार से लेकर, स्वच्छता और आरोग्यबीमा तक की सारी जानकारी दी जाती है। खेती के साथ साथ ‘ए.आय.जी.वी.’ में सिखाए जानेवाले इस जोड़-व्यवसाय के कारण प्रशिक्षण का लाभ उठानेवालों की संख्या में वृद्धी हो रही है।
अभी-अभी बिना मिट्टी की खेती अर्थात हायड्रोपोनिक्स (Hydroponics) प्रणाली का उपयोग करके गाय-भैंसों को सालभर हरा और पौष्टिक चारा दिया जा सके इसके लिए हरितगृह बहुत ही कम खर्च में यशस्वी रूप से बनाया गया है। सेन्द्रिय खेती अंतर्गत केला, पपीता, तरबूजा, लौकी, अद्रक, हल्दी, स्ट्रॉबेरी का भी उत्पादन सिखाया जाता है। यहाँ पर विभिन्न प्रकार के प्रयोग और संशोधन करके उगाए गए फल और सब्जियों का आकार भी बडा होता है। किसानों के लिए यह प्रयोग अधिक उत्पादन हेतु लाभदाई साबित होंगे।
‘Common Interest of Common Man’ डॉ.अनिरुद्ध जोशीजी के इस तत्त्वानुसार हमारा यह ‘ए.आय.जी.व्ही.’ का कार्य निरंतर से जारी है। निर्धन, मेहनकश किसानों को घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ती हेतु आवश्यक जानकारी देने से और सहायता करने से ग्राम विकास अवश्य होगा। और किसानों की आत्महत्या पर रोक लग सकती है, ऐसा विश्वास सद्गुरु श्रीअनिरुद्धजी ने व्यक्त किया है।’Common Interest of Common Man’ या डॉ. अनिरुद्ध जोशी यांच्या तत्वानुसार आपले ‘ए.आय.जी.व्ही.’चे कार्य अविरत सुरू आहे. निर्धन कष्टकरी शेतकर्यांना घरगुती गरजा पुरविण्यासाठी आवश्यक ती माहिती दिल्यास व मदत केल्यास ग्रामीण विकास नक्की होणार व शेतकर्यांच्या आत्महत्येला आळा बसेल, असा विश्वास सद्गुरु श्रीअनिरुद्धांनी व्यक्त केला आहे.
सद्गुरु श्रीअनिरुद्धजी ने अपने ’रामराज्’ प्रवचन में कहा था कि, ‘’रामराज्य का प्रवास ग्रामराज्य के स्थान से शुरु होता है और ग्रामराज्य यानि ग्रामविकास। ग्रामिण जीवन का उत्कर्ष हुए बिना भारत में रामराज्य नहीं आ सकता।’’ इसी से ‘अनिरुद्धाज् इन्स्टिट्यूट ऑफ ग्रामविकास’ का महत्त्व हमें साफ समझ में आता है।सद्गुरु श्रीअनिरुद्ध आपल्या रामराज्यातील प्रवचनात बोलले होते की, “रामराज्याचा प्रवास ग्रामराज्याच्या स्थानापासून सुरू होतो आणि ग्रामराज्य म्हणजे ग्रामविकास. ग्रामीण जीवनाचा उत्कर्ष झाल्याशिवाय रामराज्य भारतामध्ये अवतरु शकणार नाही.” यातूनच ’अनिरुध्दाज् इन्स्टिट्युट ऑफ ग्रामविकास’ याचे महत्व आपल्याला कळून येते.