बारामास खेती चारा योजना (गोग्रास योजना)
भारत जैसे कृषिप्रधान देश बड़े पैमाने पर बारिश पर ही निर्भर रहते हैं। परन्तु ऐसा नहीं है कि हर वर्ष बारिश पर्याप्त मात्रा में ही होती है। कुछ हिस्से सूखे ही रह जाते हैं। बारिश के अभाव के कारण हर वर्ष देश के कुछ जिलों में सूखा पड़ता है। महाराष्ट्र का ही उदाहरण लिया जाय तो विदर्भ, मराठवाड़ा एवं उत्तर महाराष्ट्र के कुछ जिलों में ऐसी स्थिति अक्सर दिखाई देती है। बारिश की अवकृपा हो जाए तो सूखे की स्थिति अधिक भयंकर हो जाती है।
सूखे से भी सबसे बड़ी विपत्ति तो किसानों का कर्ज़ में डूबे रहना है। इसी एक कारण की वजह से किसान कभी-कभी आत्महत्या जैसा खतरनाक कदम उठाने पर मजबूर हो जाते हैं। हर वर्ष देश में लगभग १२ हजार किसान आत्महत्या करते हैं, इससे बडी बदकिस्मती की बात क्या हो सकती है! सूखे के समय की स्थिति भीषण होती है, ऐसे में लोग स्थानांतरण करते हैं अथवा अपने अन्न-जल का इंतज़ाम करने के लिए बडे कष्ट उठाते हैं। पर सूखे की वजह से मानवों के साथ-साथ मवेशी भी प्रभावित होते हैं क्योंकि उन्हें चारा नहीं मिलता। अपने देश में गोधन महत्वपूर्ण माना जाता हैं। मवेशियों को किसानों की अनमोल संपत्ति माना जाता है। पर कई बार सूखे की स्थिति में जहां एक समय का भोजन पाना मुश्किल होता है, वहां मवेशियों को पोसना कैसे संभव होगा? इसी लिए उन्हें खुला छोड़ दिया जाता है। ऐसी स्थिति में सरकार मवेशियों के लिए चारा छावनियां निर्माण कर उनके लिए आसरा उपलब्ध करती है। कई किसान अपने मवेशियों को इन छावनियों में छोड़ देते हैं। परन्तु यह ज़रूरी नहीं है वह उनके लिए पर्याप्त होता है।
भारत की पथरीली ज़मीन का बंजरपन, बारिश की कमी, तालाब, नहरें, बांध, आदि के अभाव, इसके अलावा सबसे महत्वपूर्ण बात है घास-चारे की कमी एवं मवेशियों के लिए अपर्याप्त सुविधाएं। इन पर उपाय हेतु सद्गुरु श्रीअनिरूद्धजी ने ‘बारहमास खेती चारा योजना’ नामक प्रकल्प शुरु किया। तेरह सूत्री योजना में से यह एक महत्वपूर्ण सूत्र है। इसे ‘गोग्रास’ नाम भी दिया गया है। ‘गोग्रास’ अर्थात गाय का चारा। गाय को अनाज अथवा अन्य कोई चीज़ खिलाने की अपेक्षा मेहनत से घर में उगाई गई घास खिलानी चाहिए, यह बात सद्गुरु श्रीअनिरूद्धजी जोर देकर कहते हैं। शहरों में पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध होता है। इसका उपयोग मवेशियों के लिए चारा की आपूर्ति के लिए करना चाहिए, ऐसी उनकी दृढ़ धारणा है।
बारामास खेती चारा योजना की कार्य प्रणाली:
हर किसीको अपने-अपने घर में छोटासा ही सही एक बगीचा बनाने की इच्छा होती है। अपने घर की गैलरी में कम से कम एक तुलसी का पौधा अथवा शोभा बढ़ानेवाला पौधा तो होता ही है। इसके अलावा किसी छोटीसी कुंडी में मकई या गन्ना बोया जाय तो इस फसल का उपयोग किसानों के मवेशियों के लिए चारे के रूप में किया जा सकता है।
१) छोटी कुंडी में मकई अथवा गन्ना बोया जाए। मकई अथवा गन्ने की फसल ४५ दिनों में काफी बढ जाती है। इनमें से दो से ढ़ाई फुट चारा काटकर इसका उपयोग पशुओं के लिए किया जाता है।
२) इस कार्य में बड़ी मात्रा में श्रद्धावान भाग लेते हैं। वे नित्यनेम से अपने घर में उगाये गए इस चारे को हरिगुरुग्राम अथवा नजदीकी श्रीअनिरूद्ध उपासना केन्द्र में जमा करते हैं।
३) कुछ उपासना केन्द्र उपलब्ध स्थान पर बड़े पैमाने पर चारे की पैदावार करते हैं और उस चारे को श्रीअनिरूद्ध उपासना फाऊंडेशन में जमा करते हैं।
४) श्री अनिरूद्ध उपासना फाऊंडेसन में जमा किया गया चारा ज़रूरतमंद किसानों तक पहुंचाया जाता है।
५) किसानों के मवेशियों को चारा मिले तो वे मवेशियों के गोबर से अन्य व्यवसाय कर सकते हैं। इनमें यदि उनके पास बकरी, गाय या भैंस हो तो उनका दूध भी इन किसानों की उपजीविका का साधन बन सकता है। इसलिए उनके पशुधन को संभालने के लिए सभी स्तरों पर प्रयास करने की आवश्यकता है।
‘किसान भारत की रीढ की हड्डी है, जिसका जीवन पशुपालन पर निर्भर करता है’, ऐसा सद्गुरु श्रीअनिरूद्धजी ने कहा है। ‘गोग्रास देकर यदि पुण्य कमाना है तो हमें स्वयं चारा उगाना चाहिए, यह बात ध्यान में रहे’, यह भी सद्गुरु श्रीअनिरूद्धजी जोर देकर कहते हैं। उनकी इस पुकार को अनगिनत श्रद्धावानों ने प्रतिसाद दिया इसीलिए दिन-प्रतिदिन इस योजना का विस्तार हो रहा है और इसे बहुत अच्छा प्रतिसाद भी मिल रहा है।