ममता की गरमाहट
माँ या दादी की साडी से प्यार से बनाई गई ‘गोदड़ी’ कभी मामूली गोदड़ी नहीं होती बल्कि, उस गोदड़ी से मिलनेवाली गरमाहट ’ममता की गरमाहट’ होती है। पर देश में कई श्रमजीवी परिवारों को यह ममता की गरमाहट प्रदान करनेवाली गोदड़ी मिलना दुर्लभ होता है। सर्दियों में चुभनेवाली ठंड में बदन पर ओढ़ने के लिए कुछ भी उपलब्ध न होने के कारण उन्हें यह दिन ठिठुरते हुए बिताने पड़ते हैं। इसीलिए सद्गुरु श्री अनिरुद्धजी ने ‘ममता की गरमाहट’ नामक उपक्रम शुरू किया। इस उपक्रम के अंतर्गत श्रद्धावान पुरानी साड़ियों से गोदडियां बनाकर जरुरतमंदों में बांटते हैं।
इसके लिए श्रद्धावान पुरूष एवं महिलाओं को गोदडियां सिलने का प्रशिक्षण दिया जाता है। पुरानी साड़ियों एवं चद्दरों से गोदडियां बनाने की प्रक्रिया सिखाई जाती है। गोदडियों को लगाए जानेवाले टाँके जानबूझकर छोटे लगाए जाते हैं ताकि छोटे बच्चों के कान की बालियां या पैरों की छल्ले उसमें न फंसें। यह गोदडियाँ वजन में हलकी-फुलकी होती हैं अत: गर्भवती महिलाएं भी यह गोदडियां धोकर सुखा सकती हैं। यह गोदडियां चारों तरफ से अच्छी तरह से सिली जाती हैं ताकि गांव-खेडे में गोदड़ी के अंदरूनी भाग में कीडा, केंचुआ अथवा साँप के पिल्ले घुस न पाएं।
गोदड़ी की विशेषताएँ –
बाजार में बिकनेवाली गोदडियां और श्रद्धावानों द्वारा बनाई गई गोदडियों में महत्वपूर्ण फर्क यह है कि, श्रद्धावानों के हाथों से बनाई गई गोदडियां किसी भी अपेक्षा के बिना एवं सद्गुरु पर उनके निरपेक्ष प्यार हेतु बनाई जाती हैं। श्रद्धावान परमेश्वर एवं सद्गुरु का नामस्मरण करते हुए यह गोदडियाँ बनाते हैं। इसकी वजह से इस सेवा में भक्ति भी जुडी हुई है तथा गोदड़ी बनाने का संतोष भी मिलता है।
दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि, ‘श्रीअनिरुद्ध गुरुक्षेत्रम्’ में अनसुयामाता और माता महिषासूरमर्दिनी को अर्पण किए गए ब्लाऊजपीस और दत्तगुरुजी को अर्पण किए गए उपरणे भी गोदड़ी के इस्तमाल में लाए जाते हैं। इसके कारण अनसुयामाता, बडी-मां जगदंबा और दत्तगुरुजी के आशीर्वाद भी गोदड़ी बनानेवाले श्रद्धावान को एवं इस्तमाल करनेवाले जरूरतमंद को, अर्थात दोनों को मिलता है, ऐसा श्रद्धावानों का विश्वास है।
गोदड़ी का वितरण –
हर वर्ष कोल्हापुर और विरार के मेडिकल कैम्प्स में जरूरतमंदों को गोदडियां दी जाती हैं। २६ जुलाई २००५ को मुंबई में आई बाढ़ के दौरान कई जरूरतमंद परिवारों को यह गोदडियां दी गईं। सन २००२ से २०१८ तक धुले, कोल्हापुर, रत्नागिरी एवं नवी मुंबई में लगभग ८४,००० यह गोदडियां जरूरमंदों में बाँटी गईं। सद्गुरु श्री अनिरूद्धजी के जन्मदिन तथा अन्य विशेष धार्मिक कार्यों के निमित्त श्रद्धावान गोदडियां बनाकर भेंट अथवा दान स्वरूप देते हैं।