श्रीसाईसच्चरित पंचशील परीक्षा
सभी साईभक्तों के लिए श्री हेमाडपंत विरचित श्री साईसच्चरित एक अपरंपार और अनमोल सामर्थ्य से परिपूर्ण अनंत भंडार है। ’श्री साईसच्चरित’ ग्रंथ केवल श्री साईनाथजी का ही नहीं है बल्कि श्रीसाईनाथजी के सान्निध्य में आए हुए अनेक प्रकार के भक्तों ने सद्गुरु श्री साईनाथजी की कृपा कैसे प्राप्त की इसका इतिहास है। “यह तो साईभक्तों का ही चरित्र है, जिसके द्वारा हम परमेश्वर की कृपा कैसे संपादन की जाए यह सीख सकते हैं”, ऐसा उल्लेख सद्गुरु श्रीअनिरुद्धजी ने अपने प्रथम ग्रंथ ’सत्यप्रवेश’ में किया है।
श्री साईनाथजी द्वारा श्री गोविंद रघुनाथ दाभोलकरजी उर्फ ’हेमाडपंत’ के हाथों रचित करावाया हुआ यह ग्रंथ श्रद्धावानों के लिए मार्गदर्शक होने के साथ-साथ सांसारिक एवं पारमार्थिक विचारों का, अनुभवों का यह अनमोल चिरंतन खजाना है। साईसच्चरित के ५०वें अध्याय में निम्नलिखित पद यही बात स्पष्ट करता है।
भक्ताचिया परमहिता । स्वये निर्मोनि निजचरिता ।
हेमाडाचिया धरोनि हाता । कथा लिहविता श्रीसाई ॥
(श्रीसाई, भक्तों के परमहित की खातिर, हेमाडपंत के हाथों स्वयं अपना चरित्र निर्माण करके कथाएं लिखवा रहे हैं।)
ऐसे साईसच्चरित पर आधारित सद्गुरु श्रीअनिरुद्धजी ने पंचशील परीक्षा की घोषणा की। तब काफ़ी लोगों को अचरज हुआ। साईसच्चरित ग्रंथ पर आधारित यह परीक्षा कैसी होगी? इसका स्वरूप कैसा होगा? इसके प्रति लोगों की कितनी प्रतिक्रिया प्राप्त होगी? ऐसे कई प्रश्न श्रद्धावानों के मन में थे। इस बात को स्पष्ट करते हुए सद्गुरु अनिरुद्धजी ने कहा कि, “यह परीक्षा और यह पाठ्यक्रम ज्ञान प्राप्ति के लिए नहीं है बल्कि, भक्ति कैसे की जाए और इस भक्तिमार्ग में अधिकाधिक प्रगति करके गलत बातों एवं गलत श्रद्धा को दूर करके अपने जीवन को हर तरह से परिपूर्ण बनाने के लिए है।” संक्षेप में, सद्गुरु अनिरुद्धजी कहते हैं, यह परीक्षा भक्ति को अधिक दृढ़ करने के लिए है।
सन १९९७ में सद्गुरु श्री अनिरुद्धजी के मार्गदर्शन के अनुसार ‘श्री साईसमर्थ विज्ञान प्रबोधिनी’ नामक संलग्न संस्था के जरिए ’साईसच्चरित’ ग्रंथ पर आधारित पंचशील परीक्षाओं का प्रारम्भ हुआ। प्रथमा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी और पंचमी यह इस परीक्षा के पांच पडाव हैं।
१) प्रथमा परीक्षा में साईसच्चरित के १ से १० अध्यायों पर आधारित कुल १०० अंकों के चार प्रश्न होते हैं।
२) द्वितीया परीक्षा में ११ से २० अध्यायों पर कुल १०० अंकों के तीन प्रश्न पूछे जाते हैं।
३) तृतीया परीक्षा में २१ से ३० अध्यायों पर कुल १०० अंकों के तीन प्रश्न होते हैं।
४) चतुर्थी परीक्षा में ३१ से ४० अध्यायों पर आधारित कुल १०० अंकों के तीन प्रश्न पूछे जाते हैं।
५) पंचमी परीक्षा का स्वरूप बहुत ही व्यापक होता है। पंचमी परीक्षा में दो लिखित परिक्षाएं तथा एक प्रैक्टिकल परीक्षा की व्यापकता होती है। दो लिखित परीक्षाओं में से एक परीक्षा ४१ से ५२ अध्यायों पर आधारित १०० अंकों की तथा तीन प्रश्नों की होती है। तो दूसरी परीक्षा में संपूर्ण साईसच्चरित पर आधारित १०० अंकों का एक बड़ा प्रश्न पूछा जाता है। प्रैक्टिकल परीक्षा में अध्यात्म एवं विज्ञान का अन्योन्यसंबंध स्पष्ट करनेवाले प्रयोगों पर आधारित प्रश्न होते हैं।
१) ’एक वाक्य में उत्तर दें’ के पच्चीस प्रश्न (५० अंक)
२) साईसच्चरित में दी गई व्यक्तिरेखा के चित्र को पहचानकर उनकी जानकारी लिखिए (१५ अंक)
३) चित्र में खामियां पहचानकर कथा का वर्णन करें (५० अंक)
४) चित्र में कथा पहचानकर उसकी जानकारी लिखें (२० अंक)
५) प्रयोगों पर आधारित दो प्रश्न होते हैं। उनमें से एक प्रश्न (१५ अंक) तो दूसरा प्रश्न (५० अंक) ऐसे लघु उत्तरी एवं दीघोत्तरी प्रश्न होते हैं। उपरोक्त सभी अंकों का जोड़ करने पर पंचमी परीक्षा का प्रैक्टिकल पेपर २०० अंकों का होता है। दो लिखित पेपर सौ अंक प्रति पेपर के मुताबिक २०० और प्रैक्टिकल २००, इस तरह से कुल ४०० अंकों की परीक्षा होती है।
हर छह महीनों की अवधि में अर्थात फरवरी और अगस्त में ये परीक्षाएं होती हैं। परीक्षा के लिए किसी भी तरह का मूल्य नहीं लिया जाता। सद्गुरु श्रीअनिरुद्धजी द्वारा प्रकाशित दैनिक ’प्रत्यक्ष’ में ये प्रश्नपत्रिकाएं मराठी एवं बहुभाषिकों के लिए अंग्रेजी तथा अन्य भाषाओं में प्रकाशित की जाती हैं।
दैनिक ’प्रत्यक्ष’ में प्रश्नपत्रिकाएं प्रकाशित होने के पश्चात २० दिनों की अवधि में उन प्रश्नों के उत्तर, संदर्भित कथाएं, व्यक्तिरेखा, उन्हें साईनाथजी से प्राप्त सीख, साईनाथजी का महात्म्य एवं साईनाथजी की भक्ति की वजह से जीवन में घटित होने वाले सुंदर बदलावों के प्रति ध्यानपूर्वक अध्ययन कर काफ़ी सोच-समझकर उसका प्रस्तुतीकरण करना होता है।
श्रद्धावान अपनी उत्तर पुस्तिका में सद्गुरु का कार्य कितने विभिन्न स्तरों पर चलता है, भक्तों को आए हुए सद्गुरुरु के सुंदर अनुभव तथा सद्गुरु के कृपाछत्र का महात्म्य भी लिखते हैं। इस वजह से श्रद्धा, भक्ति, प्रेम दिल की गहराई तक उतर जाते हैं और भक्त की भक्ति भक्तिमार्ग में दृढ़ होती है। परीक्षार्थी घर पर ही अध्ययन करके पेपर लिखकर पोस्ट द्वारा ‘श्रीसाईमसर्थ विज्ञान प्रबोधिनी’ के पते पर भेजते हैं।
आरम्भिक दौर में ये परीक्षाएं स्कूलों में हुआ करती थीं। पंचमी परीक्षा के प्रैक्टिकल कक्षा में सिखाए जाते थे। स्वयं सद्गुरु श्री अनिरुद्धजी परीक्षार्थियों को विज्ञान एवं अध्यात्म के प्रैक्टिकल सिखाया करते थे। पंचमी परीक्षा के प्रैक्टिकल के स्पष्टीकरण, उनका साईसच्चरित में विभिन्न घटनाओं से जुडे़ अन्योन्य संबंधों के बारे में मार्गदर्शन करनेवाली पुस्तक भी संस्था द्वारा प्रकाशित की गई है। इसके आधार पर पहली बार पंचमी परीक्षा देनेवाले परीक्षार्थी को प्रैक्टिकल का ’जनरल’ (प्रयोग बही) पूरा करके देना होता है।
समय के साथ- साथ परीक्षा का स्वरूप भी बदला, मगर परीक्षार्थियों की संख्या में कोई कमी नहीं आई। हर वर्ष हजारों की संख्या में श्रद्धावान इस परीक्षा में बड़े चाव से सहभागी होते हैं। मुम्बई के बाहर महाराष्ट्र के साथ-साथ परदेस से भी श्रद्धावान इस परीक्षा में सहभागी होने के लिए उत्सुक रहते हैं। निरंतर साईसच्चरित की परीक्षा देते रहने के कारण श्रद्धावानों को साईसच्चरित की चौपाईयां कण्ठस्थ हो गई हैं। फलानी -फलानी चौपाई फलाने अध्याय में है, वे बडे़ आत्मविश्वास से कहते हैं। इसे इस परीक्षा की सबसे बडी़ सफलता कही जा सकती है।
अन्य परीक्षाओं की तरह ही इस परीक्षा की भी उत्तर पुस्तिकाएं जांची जाती हैं। परीक्षार्थियों को अंक दिए जाते हैं। इस परीक्षा में क्या लिखा गया है, यह नहीं देखा जाता बल्कि, परीक्षार्थी ने जो कुछ लिखा है उसके पीछे उसका भाव क्या है यही देखा जाता है। सद्गुरु श्री अनिरुद्धजी के मार्गदर्शनानुसार इस परीक्षा में विशेष योग्यता प्राप्त परीक्षार्थियों के लिए जनवरी के महीने में पुरस्कार वितरण समारोह आयोजित किया जाता है। फरवरी और अगस्त दोनों महीनों में होने वाली परीक्षाओं में बैठने वाले परीक्षार्थियों में से विशेष योग्यता प्राप्त परीक्षार्थियों के लिए सराहना समारोह में ट्रॉफी (पंचमी के परीक्षार्थियों को प्रमाणपत्र) देकर उनका गौरव किया जाता है। इसमें अल्पोपहार एवं मनोरंजन हेतु गीत-संगीत का कार्यक्रम भी आयोजित किया जाता है।
सद्गुरु श्री अनिरुद्धजी ने सभी श्रद्धावानों के लिए पंचशील परीक्षा का आयोजन कर भक्ति, सेवा और प्रेम का भंडार खोला है। सद्गुरु ने किसी भी अपेक्षा के बगैर ही यह अलौकिक खजाना श्रद्धावानों को लूटने हेतु नि:शुल्क प्रदान किया है। उनकी इस कृपादृष्टि और सहजधर्म का क्या कहने।
श्रीसाईसच्चरित से श्रीसाईनाथजी के भक्तों का चरित्र, उनके अनुभव, उनके आचरण और श्रीसाईनाथजी के कृपाछत्र में आने पर उन भक्तों के जीवन में होने वाला आमूलाग्र परिवर्तन समझ में आने लगता है। इससे सद्गुरु तत्त्व की अकारण करुणा, बिना लाभ प्रीति एवं सद्गुरु की लीलाएं समझ में आने लगती हैं। इन परीक्षाओं की वजह से सद्गुरु के सत्य, प्रेम, आनंद स्वरूपों का तथा पावित्र्य एवं मर्यादा के अधिष्ठान का परिचय इन परीक्षाओं के कारण होते रहता है।
इसीलिए प्रत्येक श्रद्धावान को जीवन सार्थक करनेवाली ये परीक्षाएं देनी चाहिए।
सद्गुरु श्रीअनिरुद्धजी द्वारा दिया गया साईभक्तिमार्ग:
१) श्रीहरिगुरुग्राम – (न्यू इंग्लिश स्कूल, बान्द्रा) इस प्रवचनस्थल पर श्री साईनाथजी की तसवीर होती है। सभी श्रद्धावान ’ॐ कृपासिंधू श्री साईनाथाय नमः’ २४ बार यह जप करते हैं।
२) सद्गुरु श्री अनिरुद्धजी ने मराठी में प्रवचनों की शुरुआत श्री साईनाथजी के ग्यारह वचनों से की। हिन्दी प्रवचनों में भी श्रीसाईसच्चरित पर आधारित प्रवचन किए गए। प्रवचन के बाद की जानेवाली आरती में श्रीसाईनाथजी की आरती का समावेश है।
३) सद्गुरु श्री अनिरुद्धजी के मार्गदर्शन पर श्रद्धावानों ने सर्वप्रथम सन १९९६ में शिरडी रसयात्रा की।
४) सद्गुरु श्री अनिरुद्धजी के मार्गदर्शन अनुसार अनिरुद्ध उपासना ट्रस्ट द्वारा मनाए जानेवाले रामनवमी उत्सव में ’श्रीसाईसत्पूजन’ तथा ’श्रीसाईनाथ महिम्नाभिषेक’ के महत्वपूर्ण उपक्रम होते हैं।