सच्चिदानंदोत्सव

प्रभू श्रीराम बनवास गए तब भरतजी अपने प्रिय भ्राता को वापस लाने के लिए चित्रकूट पर्बत पर पहुंचे। राम-भरत मिलाप की यह कथा पूरे भारत में बडे प्रेम से श्रवण की जाती है। पिताजी ने माता कैकयी को जो वचन दिया था उस वचन को निभाने हेतु रामजी ने भरत के साथ अयोध्या लौटने से मना कर दिया और भरतजी को अयोध्या लौटकर अपने कर्तव्य निभाने की प्रेमपूर्वक आज्ञा की। श्रीरामजी की आज्ञा का पालन करने हेतु भरत भारी मन से श्रीराम के चरणों पर माथा टेकते हैं और उनके आंसुओं से रामजी के चरण भीग जाते हैं।

परम कृपालु लक्ष्मणजी और माता सीता जानते थे कि भरत को रामजी के चरणों से जुदा करना असंभव सा है। अत: वे भरत को प्रभू श्रीराम की पादुकाएं अपने साथ ले जाने को कहते हैं। यही है विश्व में सबसे पहली बार परमात्मा की पादुकाओं का पूजन। पादुका पूजन श्रद्धावानों के लिए अपने सद्गुरु के प्रति कृतज्ञता, अंबज्ञता का भाव व्यक्त करने का अनोखा अवसर है।

मार्गशीर्ष महीना पवित्र एवं श्रेष्ठत महीना माना जाता है। इस महीने में श्रद्धावान डेढ या पांच दिनों के लिए बडे प्रेम से ’सच्चिदानंदोत्सव’ मनाते हैं। इस उत्सव में श्रद्धावान रामनाम बहियों के कागजों के गूदे से बनी सद्गुरु की पादुकाओं का पूजन बडे भक्तिभाव से करते हैं।

सच्चिदानंदोत्सव कैसे मनाया जाता है?

हर वर्ष सच्चिदानंदोत्सव मार्गशीर्ष महीने के शुक्लपक्ष के दूसरे शनिवार से मनाया जाता है। सच्चिदानंदोत्सव के पहले दिन पदुकाओं की प्रतिष्ठापना करने के बाद उस शाम को और जब तक पादुकाएं घर पर हैं तब तक (२ या ५ दिन) पादुकाओं का नित्यपूजन किया जाता है। इसके अलावा जिस दिन पादुकाओं का पुनर्मिलाप (विसर्जन) किया जाता है उस दिन ’पुनर्मिलाप आवाहन’ अर्थात सद्गुरु का अस्तित्व सालभर हमारे घर में रहे इस हेतु से ’पुनर्मिलाप’ के लिए घर से निकलने से पहले पूजन किया जाता है। इसकी विस्तृत जानकारी ’सच्चिदानंदोत्सव’ पुस्तिका में उपलब्ध है।

सच्चिदानंदोत्सव के लाभ:

सच्चिदानंदोत्सव मनाने का मुख्य उद्देश्य है श्रद्धावान के जीवन में प्रेमभाव, कृतज्ञताभाव और शारण्यभाव बढ़ता रहे।

मार्गशीर्ष महीने के इस पादुकापूजन से, श्रद्धावानों का मार्ग, विकासमार्ग, परमात्मा के करीब जाने का मार्ग सरल हो जाता है।

जब श्रद्धावान प्रेमभाव से पादुका पूजन करते हैं, तब यह पूजन उनके देह में मन, प्राण और प्रज्ञा तिनों स्तरों की अनुचितता को दूर करता है तथा श्रध्दावानों का समग्र विकास करके आनंद प्रदान करता है ।

सच्चिदानंदोत्सव में अनिरुद्ध अथर्वस्तोत्र श्रद्धावानों की चंचलता का नाश करके गुरुतेज प्रदान करता है। सच्चिदानंदोत्सव श्रद्धावान को चंचलत्व से गुरुत्व की ओर ले जाता है, अस्थिरता से स्थिरता की ओर ले जाता है और क्लेश से आनंद की ओर ले जाता है ।

भक्तिमार्ग पर चलते हुए श्रद्धावनों का प्रपंच और परमार्थ दोनों सुखमय होने के लिए मन, प्राण और प्रज्ञा तीनों स्तरों पर उचितत्व बनाए रखना महत्वपूर्ण होता है। सच्चिदानंदोत्सव में श्रद्धावान अनिरुद्ध अथर्वस्तोत्र और अनिरुद्ध अष्टोत्तरशत नामावलि पढते हुए सद्गुरु की पादुकाओं का पूजन के दौरान सद्गुरु श्रीअनिरुद्धजी की प्रार्थना करते हैं।

जो कोई सद्गुरु की पादुकाएं अपने घर पर लाकर उनका पूजन करता है, कलि उसकी प्रगति रोक नहीं सकता, यह श्रद्धावानों का विश्वास है।