श्रीधनलक्ष्मी एवं श्रीयंत्र पूजन

 

भारतीय संस्कृतिनुसार, कार्तिक कृष्णपक्ष त्रयोदश अर्थात्‌ धनतेरस के दिन घर के ऊर्जा स्थानों जैसे धन, अलंकार एवं दीपों का यथासंभव पूजन किया जाता है। इस कृति को करने का मूल हेतु माता लक्ष्मी की प्रार्थना करना होता है। जो इस प्रकार से है – ‘हे लक्ष्मी माता आपके द्वारा दी गयी संपत्ति का हम आदर करेंगे और उसका विनियोग आपकी पसंद के अनुसार अर्थात सत्कार्य हेतु करेंगे। यह संपत्ति इसी तरह पवित्र मार्ग से वृद्धिंगत होती रहे।’

इस प्रकार धनतेरस के दिन आदिमाता महालक्ष्मी एवं भक्तमाता श्रीलक्ष्मी दोनों की कृपा प्राप्त की जा सकती है। इन दोनों माताओं का अधिष्ठान ही श्रीयंत्र है। श्रीयंत्र के केवल पूजन एवं दर्शन मात्र से आदिमाता महालक्ष्मी तथा भक्तमाता श्रीलक्ष्मी दोनों की कृपा सहज प्राप्त की जा सकती है।

इस श्रीयंत्र के विषय में श्रीअनिरुद्ध बापू ने कहा है कि ‘श्रीयंत्र एक किला है, गढ़ है। इस गढ़ या किले पर ही आदिमाता रहती हैं।’ इस श्रीयंत्र के केवल भावपूर्ण दर्शन से मनुष्य के शरीर के शक्तिकेन्द्रों को बल प्राप्त होता है।

श्री यानी श्रेष्ठता, श्री यानी पूजनीय एवं श्री यानी षोडश ऐश्वर्य प्राप्ति का साधन।

इस विश्व का संपूर्ण शक्तिसामर्थ्य एवं ऐश्वर्य श्री के अधीन है, इसी कारण मानव के लिए महात्रिपुरसुंदरी आदिमाता चण्डिका का प्रेम, उनके षोडश ऐश्वर्य और शक्तिसामर्थ्य प्राप्त करने के लिए श्रीयंत्र की उपासना एवं पूजन अत्यंत फलदायी मार्ग हैं।

सभी प्रकार के सांसारिक एवं पारमार्थिक ऐश्वर्यों की प्राप्ति के लिए सद्‌गुरु श्रीअनिरुद्ध के मार्गदर्शनानुसार श्रद्धावान धनतेरस के दिन श्रीहरिगुरुग्राम में धनलक्ष्मी एवं श्रीयंत्र का पूजन उत्सव श्रद्धा से मनाते हैं।

श्रीयंत्र के बारे में जानकारी –

सद्‍गुरु श्रीअनिरुद्ध लिखित ‘मातृवात्सल्यविंदानम्‌’ ग्रंथ में वर्णन किए गए अनुसार आदिमाता के आदेशानुसार एवं श्रीगुरुदत्तात्रेय के कथनानुसार लोपामुद्रा ने श्रीसुक्त का नित्य पठन किया। श्रीयंत्र का रचनाकार्य परिपूर्ण करने के लिए श्रीगुरुदत्तात्रेय के कहने पर श्रीयंत्र के अधिष्ठान मंत्र का अखंड जाप किया गया, तत्पश्चात्‌ श्रीयंत्र की रचना की गयी। श्रीयंत्र का अधिष्ठान मंत्र निम्नानुसार है –

ॐ श्री कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद, श्रीं र्‍हीं ॐ महालक्ष्मै नमो नम:।

 

श्रीयंत्र की रचना एवं उत्सव के दिन स्थापना –

श्रीयंत्र तथा उसकी रचना एवं पूजन का महत्त्व सद्‌गुरु श्रीअनिरुद्ध ने मातृवात्सल्यविन्दानम्‌ और दैनिक प्रत्यक्ष में तुलसीपत्र नामक अग्रलेख श्रृंखला के माध्यम से सुचारू रूप से स्पष्ट किया है।

उत्सव के दिन अर्थात्‌ धनलक्ष्मीपूजन के दिन सद्‌गुरु श्रीअनिरुद्ध के मार्गदर्शनानुसार षोड्श (१६ प्रकार की) उपासनाओं से एवं जपों से सिद्ध किए गए द्वि आयामी (Top view) ) एवं त्रि-आयामी (Three Dimentional) इन प्रकारों के श्रीयंत्र की स्थापना और पूजन उत्सव स्थल पर मंच पे की जाती है। सभी इनके दर्शन का लाभ उठा सकते हैं।

विनम्रतापूर्वक आदिमाता एवं सद्‍गुरु त्रिविक्रम का स्मरण करते हुए श्रीयंत्र का नित्यनेम से जो श्रद्धावान वंदन करता है उसके दुष्प्रारब्ध, षड्‌रिपु एवं कुप्रवृत्तीयों का नाश इन देवताओं के हाथों में स्थित शस्त्र एवं अस्त्र उभारे जाते हैं। प्रारब्ध के कारण श्रद्धावानों के जीवन में आनेवाले संकटों एवं दिक्कतों को दूर करते हुए उनका सभी प्रकार से उत्कर्ष होने के लिए इस सक्रियता की वजह से सहायता प्राप्त होती है।

उत्सव के भक्तिमय कार्यक्रम निम्नलिखित है –

१) श्रीयंत्र पूजन

२) श्रीधनलक्ष्मी पूजन

३) दत्तमालामंत्र पठन

४) श्रद्धावानों द्वारा श्रीयंत्र का पूजन एवं अर्चन

किसी श्रद्धावान के पास श्रीयंत्र न हो फिर भी स्टेज पर स्थित श्रीयंत्र पूजन के दर्शन से भी शांति, तृप्ति, संतोष एवं भक्ति का पुण्य सहजता से प्राप्त होता है। श्रद्धावान नई श्रीयंत्र प्रतिमा अथवा घर के श्रीयंत्र प्रतिमा को अपने साथ उत्सव स्थल पर लाकर उसका पूजन एवं अभिषेक कर सकते हैं।

उत्सव स्थल पर सद्‍गुरु श्रीअनिरुद्ध द्वारा सिद्ध किया गया श्रीयंत्र इच्छुक श्रद्धावान पूजन के उपरांत घर के पूजास्थान या टिजोरी में रख सकते हैं। घर पर स्थित श्रीयंत्र के केवल अस्तित्व से ही हमें लाभ प्राप्त हो सकता है।

नित्यपूजन में अनजाने में कोई गलती हो जाने पर भी पूजक को कोई हानि नहीं होती बल्कि, श्रीयंत्र से सदैव लाभ ही प्राप्त होता है अर्थात्‌ श्रीयंत्र का केवल अस्तित्व ही शुभ, ऐश्वर्यदायक, सामर्थ्यप्रद एवं फलप्राप्तिदायक माना जाता है। श्रद्धापूर्वक श्रीयंत्र का दर्शन करनेवाले को शुभस्पंदन समेत उसके लिए जो भी उचित है उसे वह सबकुछ प्राप्त होता है।

श्रीयंत्रपूजन एवं श्रीधनलक्ष्मी पूजन के पश्चात्‌ श्रद्धावान दत्तमालामंत्र का अखंड पाठ करते हैं, तत्पश्चात्‌ पवित्र यज्ञ का प्रारंभ होता है। श्रद्धावान इस यज्ञ में स्वेच्छा से समीधा अर्पण करते हैं। श्रीगुरुदत्तात्रेय के आशीर्वाद का लाभ प्राप्त कर श्रीकृपा प्राप्त करने हेतु  यज्ञ एवं दत्तामालामंत्र का पाठ किया जाता है। श्रद्धावानों को इस यज्ञ स्थान पर अत्यंत पवित्र आनंददायी एवं भक्ति से परिपूर्ण वातावरण की अनुभूति होती है। रात को पूर्ण आहूती के बाद महाआरती, सत्संग एवं गजर के जयघोष करते हुए उत्सव की संपन्नता होती है।

दिपावली की नमकीन की स्वीकृति तथा वितरण –

जिन श्रद्धावानों को दिवाली पर बनाए गए खाद्य पदार्थ देने की इच्छा होती है, वे उत्सव स्थल पर लाकर इसे जमा कराते हैं। तदुपरांत इन पदार्थों को गरीब बस्तियों में अनाथ, वृद्ध, अपंग लोगों की सहायता करनेवाली सामाजिक संस्थायें, आदि विभिन्न स्थानों पर वितरित किया जाता है।

इस प्रकार श्रीधनलक्ष्मी एवं श्रीयंत्रपूजन उत्सव हर वर्ष धनतेरस के दिन सुबह ९.०० बजे से रात के १०.०० बजे तक अत्यंत भक्तिपूर्ण वातावरण में उत्साहपूर्वक मनाया जाता है।