श्रीमद्‌पुरुषार्थ ग्रंथराज

‘अंधकार दूर करने का मेरा यज्ञ यानि ‘श्रीमद्‌पुरुषार्थ’ अर्थात ‘सत्यस्मृति’। यह यज्ञ मैं आज तक करता आया हूँ और निरंतर करता ही रहूँगा। मेरे नाम की तरह यह यज्ञ भी अनिरुद्ध है और उसमें से निर्माण होनेवाला प्रकाश भी। यह मार्ग अपनाओ यह मेरा आग्रह भी नहीं है और बिनती भी नहीं है। क्योंकि, प्रत्येक जीव का विचारस्वातंत्र्य एवं कर्मस्वातंत्र्य मुझे पूर्णरूप से मंजूर है। ‘श्रीमद्पुरुषार्थ’ अर्थात ‘सत्यस्मृति’ मेरा धर्म है और उसे में निभाऊँगा ही। मेरा प्रत्येक निर्णय, कृति तथा कार्य इसी नियम से हुए हैं और होते रहेंगे।’ इन शब्दों में सद्‍गुरु श्री अनिरुद्ध बापूजी ने श्रीमद्‌पुरुषार्थ ग्रंथराज के विषय में अपनी भूमिका ग्रंथराज के प्रत्येक खंड के आरम्भ में ही स्पष्ट की है। ‘अंधकार दूर करने का मेरा यज्ञ यानि ‘श्रीमद्‌पुरुषार्थ’ अर्थात ‘सत्यस्मृति’। यह यज्ञ मैं आज तक करता आया हूँ और निरंतर करता ही रहूँगा। मेरे नाम की तरह यह यज्ञ भी अनिरुद्ध है और उसमें से निर्माण होनेवाला प्रकाश भी। यह मार्ग अपनाओ यह मेरा आग्रह भी नहीं है और बिनती भी नहीं है। क्योंकि, प्रत्येक जीव का विचारस्वातंत्र्य एवं कर्मस्वातंत्र्य मुझे पूर्णरूप से मंजूर है। ‘श्रीमद्पुरुषार्थ’ अर्थात ‘सत्यस्मृति’ मेरा धर्म है और उसे में निभाऊँगा ही। मेरा प्रत्येक निर्णय, कृति तथा कार्य इसी नियम से हुए हैं और होते रहेंगे।’ इन शब्दों में सद्‍गुरु श्री अनिरुद्ध बापूजी ने श्रीमद्‌पुरुषार्थ ग्रंथराज के विषय में अपनी भूमिका ग्रंथराज के प्रत्येक खंड के आरम्भ में ही स्पष्ट की है।

‘अनेक ऋषि, मुनी, आचार्य, संत, तत्त्वज्ञानी महापुरूष तथा सामान्य जनों के चिंतनपुष्पों से मैंने यह शहद इकठ्ठा करके इस ‘श्रीमद्‌पुरुषार्थ’ अर्थात ‘सत्यस्मृति’ नामक छत्ते में एकजीव की है। यह छत्ता मैंने खुला रखा है। जिसको इसका स्वाद और औषधि गुण पसंद हों उन सबके लिए’, ऐसा सद्‍गुरु श्री अनिरुद्धजी ने इस ग्रंथराज में कहा है।

‘श्रीमद्‌पुरुषार्थ ग्रंथराज’ सद्‍गुरु श्री अनिरुद्धजी की १३ योजनाओं में से एक योजना है। ‘सत्यप्रवेश’, ‘प्रेमप्रवास’ और ‘आनंदसाधना’ ये श्रीमद्पुरुषार्थ ग्रंथराज के तीन खंड हैं।

तीन खंड –

 

१) सत्यप्रवेश – आत्यंतिक निवृत्तिवाद और ऐहिक स्वार्थ से जुड़ा प्रवृत्तिवाद इन दोनों एकांतिक बातों से व्यक्ति के जीवन में तथा समाज में असंतुलन निर्माण होता है। भक्ति की सहायता से निष्काम कर्मयोग सीखानेवाला मार्ग ही मानवधर्म को परमेश्वरी ऐश्वर्य प्राप्त कराता है। इस खंड में सद्‍गुरु श्री अनिरुद्धजी ने मर्यादामार्ग का परिचय बहुत ही आसान शब्दों में, आसान उदाहरणों समेत कराया है।

२) प्रेमप्रवास – मानव के जीवन की यात्रा आनंददायी होने के लिए आवश्यकता होती है पूरी यात्रा में इस एकमात्र सत्य को, परमेश्वर को खोजते रहने की और इस सत्य की खोज अर्थात परमेश्वर की खोज यानि आनंदप्राप्ति, ये यात्रा प्रेममय हुए बगैर नहीं होती। समर्थ एवं तृप्त जीवनयात्रा का एकमात्र मार्ग है ‘प्रेमप्रवास’ और प्रेमप्रवास ही ‘मर्यादापुरूषार्थ’ है।

श्रीमद्‌पुरुषार्थ का ये द्वितिय खंड अर्थात ‘प्रेमप्रवास’ ये तीन प्रदेशों में से विकसित होता जाता है।

१) पूर्वरंग

२) श्रीरंग-पुरूषार्थ पराक्रम

३) मधुफलवाटिका

‘पूर्वरंग’ यानि अज्ञात की खोज करते हुए ज्ञान की प्राप्ति।

‘श्रीरंग’ यानि उत्कृष्ट पुरूषार्थ कैसे किया जाए और संपूर्ण जीवन प्रतिभावशाली, भक्तिशील बनाकर ’उस’की प्राप्ति करने का सुस्पष्ट और संपूर्ण मार्गदर्शन।‘मधुफलवाटिका’ यानि एक ऐसा सुंदर उपवन कि जिसमें कहीं से भी प्रवेश किया जाए और किसी भी पेड़ के फल तोडे जाएं तो परिपक्व मधुर फल ही प्राप्त होंगे।

३) आनंदसाधना – ‘आनंदसाधना’ यानि मर्यादमार्ग पर परमेश्वर से प्रेम करते हुए आगे बढते हुए जगह-जगह पर आनंद जो ओतप्रोत भरा हुआ है उसे प्राप्त करने के विभिन्न उपाय।

‘साधना’ यानि कोई उग्र, कठोर उपक्रम नहीं है तो ‘साधना’ यानि नवविधा निर्धार अपने जीवन में सफलतापूर्वक उतारने के लिए परमेश्वर के अष्ट-बीज-ऐश्वर्य से एवं परमात्मा के नव-अंकुर ऐश्वर्य से नाता एवं कडी जोडने के प्रयास।

‘सत्यप्रवेश’ एवं ‘प्रेमप्रवास’ प्रत्येक जीवात्मा को अपना जीवन अधिकाधिक सुंदर एवं समर्थ बनाने के लिए प्रेमपूर्वक मार्गदर्शन करते हैं। तो ‘आनंदसाधना’ जीवात्मा के इन परिश्रमों को परमेश्वर की सहायता प्राप्त कराता है।‘सत्यप्रवेश’, ‘प्रेमप्रवास’ एवं ‘आनंदसाधना’ तीनों मार्ग, उनकी लगन लगने पर अलग-अलग नहीं रहते बल्कि एकरूप हो जाते हैं तथा मानवी जीवन को परिपूर्ण बनाते हैं। फिर चाहे वह सामान्य गृहस्थ जीवन की जरूरत हो या पूर्ण आध्यात्मिक स्तर की आवश्यकता।

श्रीमद्‌पुरुषार्थ के ’आनंदसाधन’ नामक तीसरे खंड का ‘आचमन १७१’ हमें श्रीमद्‌पुरुषार्थ ग्रंथराज की जानकारी और विशेषता दोनों विशद करता है।यात्रा आरम्भ करने से पहले हर यात्री अपनी यात्रा की तैयारी करके उसके अनुसार टिकट, धन, खाने-पीने का इंतजाम, आदि यात्रा का सामान अपने साथ लेता है और उसमें भी आपातकाल के लिए कुछ इंतजाम किया होता है। ऐसे यात्री की ही यात्रा सफल संपूर्ण होती है।जीवन की यात्रा में सफल यात्री की पूंजी है ‘श्रीमद्‌पुरुषार्थ ग्रंथराज’। इस पूंजी में उस यात्री के उपयोग में आनेवाली सभी चीजें मौजूद होती ही हैं।

‘श्रीमद्‍पुरुषार्थ ग्रंथराज’ का श्रीहरिगुरूग्राम में आगमन –

हर गुरुवार को श्रीहरिगुरुग्राम, बांद्रा में ‘श्रीमद्‌पुरुषार्थ ग्रंथराज’ की मूल कापियों का आगमन होता है। पालकी में इन ग्रंथों को मुख्य मंच पर लाया जाता है। रामनाम की २५ बहियां बैंक में जमा करानेवाले श्रद्धावानों को ‘श्रीमद्‌पुरुषार्थ’ ग्रंथराज की पालकी उठाने का तथा रामनाम की ५० बहियाँ जमा करानेवाले श्रद्धावानों को ग्रंथराज को चंवर फेरने की सेवा दी जाती है।

श्रीमद्‌पुरुषार्थ ग्रंथराज कहाँ पाए जा सकते हैं?

ये तीनों ग्रंथ श्री अनिरुद्ध गुरुक्षेत्रम्‌, खार (पश्चिम), श्रीहरिगुरुग्राम, बांद्रा (पूर्व), मुम्बई और श्री अनिरुद्ध उपासना केंद्रों पर तथा ‘आंजनेय ई शॉप’ नामक वेबसाइट पर भी उपलब्ध हैं।